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Showing posts from February, 2022

न जाने कहाँ मैं किधर खो गयी 【 62 】

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                                   रुबाई                   कि यादों में तेरी मैं गुम हो गयी।                   न जाने कहाँ मैं किधर खो गयी।।                   भला कौन सा लोक है ये प्रिये।                    जहाँ चैन की नींद मैं सो गयी।।                                    ग़ज़ल                    तुझे आज पा ख़ुद को मैं खो रही हूँ।।                    अजी प्रीत के बीज मैं बो रही हूँ।।                    मिटा खौफ़ सारा कि दिल को सकूँ है।        ...

ऋतुराज घर में आया 【61】

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खिलने लगीं ये अखियाँ तन मन पे  नूर छाया। पतझड़ के बाद देखो, ऋतुराज  घर में आया।। घर बन गया है उपवन, है खुशबुओं का डेरा। गाती है गीत धड़कन , दिल झूमे आज मेरा।। खुशियों की आ घटायें कहने लगीं फ़साना। बरसीं सुधा वो बनकर, गा प्यार का तराना।। मोड़ा सभी से मुखड़ा , नाता उसी से जोड़ा। जब हाथ थामा उसने , सारे जहाँ को छोड़ा।। रग रग को चूम उसने पतिया सी मैं तो बाँची। पग बाँध घुँघरू मैं भी फिर झूम कर के नाँची।। कहने लगीं दिशाएँ क्या रूप तूने पाया। पतझड़ के बाद देखो, ऋतुराज  घर में आया।। ऋतुराज ने बजाई, जब प्रेम की मुरलिया। मैं तो हुई दिवानी, फिरती हूँ बन बावरिया।। बरसी है उसकी रहमत, भीगी रहूँ उसी में। अब और कुछ न भाये, डूबी रहूँ उसी में।। सुन लो ऐ दुनियाँ वालो, डोली सजा रही हूँ। दुल्हन मुझे बनाओ ,मैं घर को जा रही हूँ।। करना विदा ख़ुशी से, रोना कभी न प्यारो। 'माही' के संग रहूँगी, तुम सबके दिल में यारो।। खोकर ख़ुदी को मैंने , रब को है आज पाया। पतझड़ के बाद देखो, ऋतुराज  घर में आया।।                     © डॉ० प्रतिभा 'म...