न जाने कहाँ मैं किधर खो गयी 【 62 】
रुबाई
कि यादों में तेरी मैं गुम हो गयी।
न जाने कहाँ मैं किधर खो गयी।।
भला कौन सा लोक है ये प्रिये।
जहाँ चैन की नींद मैं सो गयी।।
ग़ज़ल
तुझे आज पा ख़ुद को मैं खो रही हूँ।।
अजी प्रीत के बीज मैं बो रही हूँ।।
मिटा खौफ़ सारा कि दिल को सकूँ है।
लगे दाग रूह पर सभी धो रही हूँ।।
पकड़ हाथ तुमने लगाया गले से।
मिलन की वो घड़ियाँ खड़ी पो रही हूँ।।
सितारों की दुनियाँ वतन है हमारा।
जहाँ गोद में तेरी मैं सो रही हूँ।।
तेरे रँग रँगी आज 'माही' मेरे सुन।
हैं आँसू ख़ुशी के मैं खुश हो रही हूँ।।
© डॉ० प्रतिभा माही
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