जलाता आज ये सावन 【66】
कहाँ हो मीत आ जाओ बुलाता आज ये सावन छुपे हो किस जहाँ में तुम चिढ़ाता आज ये सावन घटाओं से कहा हमने पवन को भी पठाया है फ़िज़ा को बैठ झूले में झुलाता आज ये सावन बरसती बूँद बदरी की बजाती साज सरगम के सुनाती है मधुर मुरली लुभाता आज ये सावन नज़ारे देख उल्फ़त के नज़र ढूढे सदा तुझको लिखा गीतों में हाल-ए-दिल वो गाता आज ये सावन कड़कती दामिनी आकर अकेले में डराती है लगालो कण्ठ से 'माही' जलाता आज ये सावन © डॉ० प्रतिभा 'माही'