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पंचकूला की धरती से..!!!

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अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना,                      सुन लो बहुत जरूरी है। हर दिल से हुंकार निकलना,                      सुन लो बहुत जरूरी है।। चील व कऊए गिद्ध भेड़िए,                       देखो बैठे ताक रहे हैं। रणभूमि में बिगुल का बजना,                      सुन लो बहुत जरूरी है।।                                  गीत  पाँच  कुला की धरती से में, शीश नवाने आई हूँ । धर्म यज्ञ की आहुति का बिगुल बजाने आई हूँ ।। देश की खातिर खून न उबले , खून नहीं वो पानी हैं । रण चंडी का रूप धरे वो, नारी हिन्दुस्तानी है। बात यही बस तुम लोगों को , आज बताने आई हूँ।। पाँच  कुला की धरती से में, शीश नवाने आई हूँ । धर्म यज्ञ की आहुति का बिगुल बजाने आई हूँ ।। चण्डी दुर्गा काल...