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Showing posts from July, 2023

कवि सम्मेलन(79)

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बन्दिशों को तोड़कर, प्यार से मैं बोल कर। शब्द के कुछ गुलगुले, चाशनी में घोल कर।। आ गई हूं सामने, बात दिल की बोलने । ठोंकिये अब तालियाँ, हाथ अपने खोल कर।। मुझको उनसे प्यार , है तो है दिल-ए-गुलज़ार, है तो है डूबी हूँ गर ख़्वाब में तेरे पगलों में नाम शुमार, है तो है कल यार उनसे...  मुलाकात हो गई सोची नहीँ थी वही बात हो गई...!! सिलसिला शुरू हुआ.... पता ही नही चला.... कि कब दिन गुज़रा, कब शाम ढली.... और कब रात हो गई...! सोची नहीँ थी वही बात हो गई...!! गुफ्तगू करने लगे... सभी सितारे....  और जुगनू भी निकल आए.... अपने मठों से बाहर......  झींगुर बजाने लगे बाजा .... और टर्र - टर्र  टर्राने लगे  मेंढक..... देखते - देखते ... चाँदनी चाँद के आगोश में खो गई सोची नहीँ थी वही बात हो गई...!! चाँदनी चाँद मैं खो जाए तो अमावस आती है  अगर छेड़े कोई कुदरत तो कयामत छाती है दिल में उसको, कैद किया फिर,फैंकी सारी चाबियां अनजाने में, नज़रें मेरी, कर बैठीं गुस्ताखियां शोर मचाता इंजन जैसे, दौड़ रहा हो पटरी पर  धक-धक धक-धक धड़के धड़कन ,  ऐसी हैं बेताबियां ***** मुझे लगता ह...

सुनो आहें मैं भरता हूं वो अपनी जेब भर्ती है

चोट खाए हुए हैं....! मुझे लगता है.... यहां कुछ लोग.... बहुत चोट खाए हुए हैं....! तभी तो,  नजरें नीचे झुकाये  हुए हैं....! जब बैठी हो बीवी सामने....  तो डर लगता है जनाब....! बेचारे.... खुलकर हंस नहीं पाते.... खुलकर तक नहीं पाते... तभी तो रुमाल में.... अपना मुहूँ छुपाए हुए हैं...!  क्या कहें...? अपनों के सताये हुए हैं.....! यहां कुछ लोग.... बहुत चोट खाए हुए हैं....!!!!! Gazal: सुनो आहें मैं भरता हूं वो अपनी जेब भर्ती है मैं उससे प्यार करता हूं वो अपनी चाल चलती है बड़े ही प्यार से यारो, चुरा लेती सभी सुख चैन खड़ी हो रोज छाती पर, मेरी वो मूंग दलती है। कभी दो शब्द मैं कहता, अजी जब प्यार से उसको  तभी बन जाती रणचंडी, आ मुझ पर टूट पड़ती है। चला देती वो आ मुझ पर, कभी बेलन कभी करछी रसोई में पकौड़े सा मुझे वो रोज तलती है। सुनो कमसिन कली सी वो, नही है अप्सरा से कम। बड़ी भोली है दिखने में, मगर नागिन सी डसती है। अदालत में सुनो हक से सुनाता फैसला सबको। मगर कब सामने उसके, मेरी ये दाल गलती है। करूं तो मैं करूं क्या अब, नहीं कुछ भी समझ आता। बतादो यार मुझे माही, क्यूं बीवी रोज छलत...