सुनो आहें मैं भरता हूं वो अपनी जेब भर्ती है
चोट खाए हुए हैं....!
मुझे लगता है....
यहां कुछ लोग....
बहुत चोट खाए हुए हैं....!
तभी तो,
नजरें नीचे झुकाये हुए हैं....!
जब बैठी हो बीवी सामने....
तो डर लगता है जनाब....!
बेचारे....
खुलकर हंस नहीं पाते....
खुलकर तक नहीं पाते...
तभी तो रुमाल में....
अपना मुहूँ छुपाए हुए हैं...!
क्या कहें...?
अपनों के सताये हुए हैं.....!
यहां कुछ लोग....
बहुत चोट खाए हुए हैं....!!!!!
Gazal:
सुनो आहें मैं भरता हूं वो अपनी जेब भर्ती है
मैं उससे प्यार करता हूं वो अपनी चाल चलती है
बड़े ही प्यार से यारो, चुरा लेती सभी सुख चैन
खड़ी हो रोज छाती पर, मेरी वो मूंग दलती है।
कभी दो शब्द मैं कहता, अजी जब प्यार से उसको
तभी बन जाती रणचंडी, आ मुझ पर टूट पड़ती है।
चला देती वो आ मुझ पर, कभी बेलन कभी करछी
रसोई में पकौड़े सा मुझे वो रोज तलती है।
सुनो कमसिन कली सी वो, नही है अप्सरा से कम।
बड़ी भोली है दिखने में, मगर नागिन सी डसती है।
अदालत में सुनो हक से सुनाता फैसला सबको।
मगर कब सामने उसके, मेरी ये दाल गलती है।
करूं तो मैं करूं क्या अब, नहीं कुछ भी समझ आता।
बतादो यार मुझे माही, क्यूं बीवी रोज छलती है।
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