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पत्थरों के शहर में...(72) 01

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तालियाँ   बज़्म में आइये मुस्कुरा लीजिए आप मिलकर ज़रा नाच गा लीजिए  क्या पता कल मिले वक़्त या ना मिले तालियाँ आज खुलकर बजा लीजिए पत्थरों के शहर में क्या बताएं क्या घटे इन पत्थरों के शहर में। रो रही माँ भारती अब पत्थरों के शहर में।। मर गयी इन्सानित  औ ज़ुर्म मुहुँ फाड़े खड़ा। हो गया इंसान भी पत्थर पत्थरों के शहर में।। भारत' नाम बता आना उठो देश के वीर सपूतो अपना कदम बढ़ाओ तुम। भारत की रक्षा की ख़ातिर दुश्मन से टकराओ तुम।। दुश्मन को उनकी चालों का, अच्छा सबक सिखा आना। कोई नाम तुम्हारा पूछे  'भारत' नाम बता आना।। जायें छोड़कर भारत को जो चाटें तलवे दुश्मन के, वो जायें छोड़कर भारत को। जो छेद करें खा थाली में, वो जायें छोड़कर भारत को।। बात करें क्या ग़द्दारों की, जो रोज तिजोरी भरते हैं। जो लोटे हैं बिन पेंदी के, वो जायें छोड़कर भारत को।। देश निकाला दो उनको जो भिड़वा देते आपस मे,  तुम देश निकाला दो उनको। जो करें दोगली बात सदा, तुम देश निकाला दो उनको।। कर दो उनको बेपर्दा अब, जो भेष बदल कर रहते हैं। जो नौंच-नौंच खाते भारत,  तुम देश निकाला दो उनको।। तुमको तृप्त कराया है क...

मेरे इश्क में....हवन न हो जाए तो कहना....! नज़्म (71)

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हुस्न की.... तितलियों का पुजारी.... तू कभी .... रूह में उतर कर तो देख....! तू मेरे इश्क़ में.... हवन न हो जाए तो कहना....! तू कभी....   फुर्सत में मुझे पढ़ कर तो देख....! इन पन्नों में.... दफन न हो जाए तो कहना.... तू मेरे इश्क़ में.... हवन न हो जाए तो कहना....! तू कभी... इस नूर - ए - इश्क़ का ... एहसास पाकर तो देख....! गर मिलते.... पवन न हो जाए तो कहना...! तू मेरे इश्क़ में.... हवन न हो जाए तो कहना....! तू कभी  छेड़ इन सांसों की सरगम....! रूह तेरी... मगन न हो जाए तो कहना...! तू मेरे इश्क़ में.... हवन न हो जाए तो कहना....!                     © डॉ० प्रतिभा 'माही'

चाणक्यनीति संग्राम: 370, 35-A की धारा का अंत (70)

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  'भारत' नाम बता आना उठो देश के वीर सपूतो अपना कदम बढ़ाओ तुम। भारत की रक्षा की ख़ातिर दुश्मन से टकराओ तुम।। दुश्मन को उनकी चालों का, अच्छा सबक सिखा आना। कोई नाम तुम्हारा पूछे  'भारत' नाम बता आना।। देश निकाला दो उनको जो भिड़वा देते आपस मे,  तुम देश निकाला दो उनको। जो करें दोगली बात सदा, तुम देश निकाला दो उनको।। कर दो उनको बेपर्दा अब, जो भेष बदल कर रहते हैं। जो नौंच-नौंच खाते भारत,  तुम देश निकाला दो उनको।। जायें छोड़कर भारत को जो चाटें तलवे दुश्मन के, वो जायें छोड़कर भारत को। जो छेद करें खा थाली में, वो जायें छोड़कर भारत को।। बात करें क्या ग़द्दारों की, जो रोज तिजोरी भरते हैं। जो लोटे हैं बिन पेंदी के, वो जायें छोड़कर भारत को।। चाणक्यनीति संग्राम दोहा जकड़ी थी- जो पाक ने,  जन्नत - सी जागीर। चाणक्यनीति - संग्राम से,  पाया -वो कश्मीर।।  दो हजार- उन्नीस में ,  पाँच- अगस्ती- शाम। भारत के- दो शेर ने,  किया- अनौखा काम।। जिसकी सत्तर- साल से,  रही -प्रतीक्षा रोज। मोदी जी - और अमित ने,  लिया मार्ग वो खोज।।    कविता आज...

सरल भाषा में ग़ज़ल का संक्षिप्त परिचय भाग - ०१ [ 69]

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सरल भाषा में ग़ज़ल का संक्षिप्त परिचय  **********************************       यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है ।जो बाद में फ़ारसी, उर्दू और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुई।       संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई। शब्दार्थ ******     "अरबी भाषा के इस शब्द का अर्थ है औरतों से या औरतों के बारे में बातें करना।" स्वरूप ***** 1)- ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। 2)- इसके पहले शेर को मतला कहते हैं।  3)- ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता   कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है।  4)- आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)।  ग़ज़ल की विशेष ध्यान रखने योग्य गुण a)- एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं।  b)- ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।  c)- कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं। d)- ग़ज़ल के शेर में तुकांत श...