सरल भाषा में ग़ज़ल का संक्षिप्त परिचय भाग - ०१ [ 69]

सरल भाषा में ग़ज़ल का संक्षिप्त परिचय 
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     यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है ।जो बाद में फ़ारसी, उर्दू और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुई।

      संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई।
शब्दार्थ
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    "अरबी भाषा के इस शब्द का अर्थ है औरतों से या औरतों के बारे में बातें करना।"
स्वरूप
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1)- ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है।

2)- इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। 
3)- ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है। 

4)- आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)। 

ग़ज़ल की विशेष ध्यान रखने योग्य गुण
a)- एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। 

b)- ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। 

c)- कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।

d)- ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है।

e)-  शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। 

f)- मतले के दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है।

g)-  रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है।

h)- रदीफ़ और काफ़िया एक ही शब्द के भाग भी हो सकते हैं और बिना रदीफ़ का शेर भी हो सकता है जो काफ़िये पर समाप्त होता हो।

5)- ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे वैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। 

6)- उर्दू का पहला दीवान शायर कुली कुतुबशाह है।

ग़ज़ल के प्रकार
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तुकांतता के आधार पर ग़ज़लें दो प्रकार की होती हैं-
1)- मुअद्दस ग़ज़लें-
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 जिन ग़ज़ल के अश'आरों में रदीफ़ और काफ़िया दोनों का ध्यान रखा जाता है।
2)- मुकफ़्फ़ा ग़ज़लें- 
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जिन ग़ज़ल के अश'आरों में केवल काफ़िया का ध्यान रखा जाता है।

भाव के आधार पर भी गज़लें दो प्रकार की होती हैं-
1)- मुसल्सल ग़ज़लें
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जिनमें शेर का भावार्थ एक दूसरे से आद्यंत जुड़ा रहता है।
2)- ग़ैर मुसल्सल ग़ज़लें-
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 जिनमें हरेक शेर का भाव स्वतंत्र होता है।
 
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डॉ० प्रतिभा 'माही' 

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