चाणक्यनीति संग्राम: 370, 35-A की धारा का अंत (70)
'भारत' नाम बता आना
उठो देश के वीर सपूतो अपना कदम बढ़ाओ तुम।
भारत की रक्षा की ख़ातिर दुश्मन से टकराओ तुम।।
दुश्मन को उनकी चालों का, अच्छा सबक सिखा आना।
कोई नाम तुम्हारा पूछे 'भारत' नाम बता आना।।
देश निकाला दो उनको
जो भिड़वा देते आपस मे, तुम देश निकाला दो उनको।
जो करें दोगली बात सदा, तुम देश निकाला दो उनको।।
कर दो उनको बेपर्दा अब, जो भेष बदल कर रहते हैं।
जो नौंच-नौंच खाते भारत, तुम देश निकाला दो उनको।।
जायें छोड़कर भारत को
जो चाटें तलवे दुश्मन के, वो जायें छोड़कर भारत को।
जो छेद करें खा थाली में, वो जायें छोड़कर भारत को।।
बात करें क्या ग़द्दारों की, जो रोज तिजोरी भरते हैं।
जो लोटे हैं बिन पेंदी के, वो जायें छोड़कर भारत को।।
चाणक्यनीति संग्राम
दोहा
जकड़ी थी- जो पाक ने, जन्नत - सी जागीर।
चाणक्यनीति - संग्राम से, पाया -वो कश्मीर।।
दो हजार- उन्नीस में , पाँच- अगस्ती- शाम।
भारत के- दो शेर ने, किया- अनौखा काम।।
जिसकी सत्तर- साल से, रही -प्रतीक्षा रोज।
मोदी जी - और अमित ने, लिया मार्ग वो खोज।।
कविता
आज सुनाऊँ किस्सा तुमको, काश्मीर घाटी का।
महके जिसकी वादी-वादी, जन्नत की उस माटी का।।
घर बैठे कुछ ग़द्दारों ने, उस पर धाक जमाई थी।
जन्नत की उस बगिया में, आतंकी पौध उगाई थी।।
370 35 - A की, हतकड़ियों में कैद किया।
आड़ प्रथाओं की ले लेकर, हर पल काम अवैध किया।।
नोंच के बोटी-बोटी जन की, घर को शमशान बनाते थे।
मासूमों के हाथों में, आकर हथियार थमाते थे।।
बच्चे बूढ़े नर नारी सब, मौत के भय से डरते थे।
हँसना भूल गए थे सारे, घुट घुट आहें भरते थे।।
रचा चक्रव्यूह मोदी जी ने, सब आतंकी घेर लिए।
रक्षक पहरेदार बना दो, लख सैनानी भेज दिए।।
मुफ़्ती अब्दुल्ला नज़रबन्द कर, कूटनीति अपनायी है।
मोदी जी ने हर बन्दे को, राहत सी पहुंचायी है।।
नियम नये कुछ लागू कर अब, जन्नत नई बनाई है।
सत्तर साल में यारो अब, पूरी आज़ादी पाई है।।
विश्व विजय का सिंह नादकर, अदभुत संख बजाया है।
अब काश्मीर की वादी को, माँ का सरताज बनाया है।।
भारत माँ दुल्हन सी सजकर, देखो सम्मुख आयी है।
झूम रहे नर-नारी-बच्चे, लहर खुशी की छायी है।।
अब काश्मीर की घाटी में, खुशियों का परचम फहरेगा।
घर घर की छत पर अब यारो, रोज तिरंगा लहरेगा।।
आतंकी मनसूबे सारे, आज हुए हैं खण्ड खण्ड।
जन जन के ह्रदय से निकला, मोदी की जयघोष प्रचण्ड।।
घाटी का ये चप्पा-चप्पा, वन्देमातरम बोल रहा।
भारत की हुँकारों से अब, पाकिस्तान भी डोल रहा।।
दुनियाँ के नक़्शे से इक दिन, नामोनिशां मिटा देंगे।
गर गलती से चाल चली तो, माटी में दफना देंगे।।
'माही' का ये लेखा जोखा, जिस दिन करवट बदलेगा।
उस दिन यारो दुनियां का ये, नक्शा फिर से बदलेगा।
© डॉ० प्रतिभा 'माही'
17/9/2019
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कश्मीर की दर्दनाक घटना का दृश्य: दोहे
दृश्य देखकर फ़िल्म का, समझो उनकी पीर।
आतंकी के दौर में, कैसा था कश्मीर।।
कश्मीरी पंडित सभी, निकाल दिए तत्काल।
बचते-बचते रह गये, गये काल के गाल ।।
सम्मुख रखकर लाल के, माँ का किया हलाल।
टुकड़े-टुकड़े कर दिया, ले आरे पर डाल।।
बन्दूकों की नौंक पर, थे माँ के सब लाल।
बेबस सब तकते रहे, डर से हो बेहाल।।
कब्र खोद कश्मीर में, दफ़न किये परिवार।
एक कतार में कर खड़ा, दिया सभी को मार।।
© डॉ० प्रतिभा 'माही'
24/04/2022
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