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पुस्तक: इश्क़ नचाए गली-गली (सूफ़ी गीत संग्रह) समीक्षा (80)

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पुस्तक  amazon पर उपलब्ध है , नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आप प्राप्त कर सकते हैं इश्क नचाये गली गली (Ishq Nachaye Gali Gali) https://amzn.eu/d/cg4QhYD पुस्तक :   इश्क़ नचाए गली-गली (सूफ़ी गीत संग्रह) रचनाकार :  डॉ० प्रतिभा 'माही' (पंचकूला) हरियाणा। संपर्क: मो० न० 8800117246 समीक्षा :   एम० एल० अरोड़ा ‘आज़ाद’ ( लेखक/संपादक/अनुवादक/प्रकाशक)  8360773963 चंडीगढ़।               इश्क़ रब से हो या रब के बनाए इंसानों से, जब हो जाए,  तो वाकई गली-गली में नचा ही देता है। डॉ प्रतिभा ‘माही’ जी की सूफियाना अंदाज में लिखी गई  पुस्तक ‘ इश्क़ नचाए गली-गली’ जिसमें उन्होंने 76 गीत अपने माही/पिया/कृष्णा/ मोहना को समर्पित किए हैं। समर्पण देखते ही पुस्तक के प्रति रुचि जाग जाती है, कि एक ‘माही’ तो है प्रतिभा, सूफ़ी गीतों की रचयेता, तो यह दूसरा ‘माही’ कौन है…?               जैसे-जैसे हम गीतों को पढ़ते जाते हैं, गुनगुनाते जाते हैं, हम ख़ुद भी उस ‘माही’ को समर्पित...

हिंदी बोलो मत शरमाओ(75)

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बने विश्व की भाषा हिंदी ,वक्त बदलना चाहिए। राज रहे हिंदी का बस अब, तख्त पलटना चाहिए। गजल मुझे कहते सभी हिन्दी सखी उर्दू हमारी है सुरीली हूँ मैं कोयल सी ज़माने को वो प्यारी है पीपी भारी न पड़ जाऊँ डरे यारो ये अंग्रेजी महारानी मैं भारत की , वो शहज़ादी हमारी है ग़ज़ल गीतों में करते हम, मुहब्बत की सदा बातें  चले जादू हमारा जब चढ़े अदभुत ख़ुमारी है झगड़ते हो क्यूँ आपस में क्यूँ दुश्मन तुम बने बैठे। मैं हिंदी भी तुम्हारी हूँ वी उर्दू भी तुम्हारी है। अज़ब रिश्ता है दोनों का, बँधे इक डोर से हम तो ख़ुदा के हम सभी बन्दे डगर इक ही हमारी है। भला सीमा क्यूँ खींची है करें फरियाद हम 'माही'। इबादत कर रही उर्दू बनी हिन्दी पुजारी है। © डॉ० प्रतिभा 'माही' हिंदी बोलो मत शरमाओ ***************** जग की राज दुलारी हिंदी, है भारत माता की बिंदी। हिंदी बने विश्व की भाषा , स्वाभिमान की हो परिभाषा। हिंदी को सम्मान मिले अब , जन-जन से बस मान मिले अब । आओ मिलकर कदम बढ़ायें,  घर-घर में जाकर समझायें । बोल चाल की भाषा हिंदी,  चमक उठे हिंदी की बिंदी । हिंदी की तो बात अलग है , चाल अलग है ढाल अलग है । हिंद...

सखी री मति रोकै तू गैल (77)

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कहूं पोय लहगा, कहूं पोय चोली लाज शर्म सब,  छोड़के मैं तो ,  बस कान्हा की होली सखी री... मति रोके तू गेल.... मैं तो वृंदावन जाऊं री...!2 मैं तो वृंदावन जाऊं री...! मैं तो वृंदावन जाऊं री...! सखी री... मति रोकै तू गेल..... मैं तो वृंदावन जाऊं री...! जौ रोकै तू गेल हमारी... प्राण छोड़ उड़ जाऊंगी....! सखी री... मति रोकै तू गेल..... मैं तो वृंदावन जाऊं री...! वृंदावन में रास रचावें...  राधा संग मुरारी...! बलि बलि जाऊं देखि देखि  मैं.... अपनों तन मन हारी....! डोल रही हूं बावरिया सी.. प्राण छोड़ उड़ जाऊंगी....! सखी री... मति रोकै तू गेल..... मैं तो वृंदावन जाऊं री...! © Dr Pratibha 'Mahi'