हिंदी बोलो मत शरमाओ(75)

बने विश्व की भाषा हिंदी ,वक्त बदलना चाहिए।
राज रहे हिंदी का बस अब, तख्त पलटना चाहिए।

गजल

मुझे कहते सभी हिन्दी सखी उर्दू हमारी है
सुरीली हूँ मैं कोयल सी ज़माने को वो प्यारी है

पीपी भारी न पड़ जाऊँ डरे यारो ये अंग्रेजी
महारानी मैं भारत की , वो शहज़ादी हमारी है

ग़ज़ल गीतों में करते हम, मुहब्बत की सदा बातें 
चले जादू हमारा जब चढ़े अदभुत ख़ुमारी है

झगड़ते हो क्यूँ आपस में क्यूँ दुश्मन तुम बने बैठे।
मैं हिंदी भी तुम्हारी हूँ वी उर्दू भी तुम्हारी है।

अज़ब रिश्ता है दोनों का, बँधे इक डोर से हम तो
ख़ुदा के हम सभी बन्दे डगर इक ही हमारी है।

भला सीमा क्यूँ खींची है करें फरियाद हम 'माही'।
इबादत कर रही उर्दू बनी हिन्दी पुजारी है।

© डॉ० प्रतिभा 'माही'


हिंदी बोलो मत शरमाओ
*****************
जग की राज दुलारी हिंदी,
है भारत माता की बिंदी।

हिंदी बने विश्व की भाषा ,
स्वाभिमान की हो परिभाषा।

हिंदी को सम्मान मिले अब ,
जन-जन से बस मान मिले अब ।

आओ मिलकर कदम बढ़ायें, 
घर-घर में जाकर समझायें ।

बोल चाल की भाषा हिंदी, 
चमक उठे हिंदी की बिंदी ।

हिंदी की तो बात अलग है ,
चाल अलग है ढाल अलग है ।

हिंदी को पहचानो भाई ,
स्वतंत्रता इसने दिलवाई ।

वीर शहीदों की ये दाती ,
राष्ट्रपिता की है शहज़ादी ।

मान दिया है जिसने इसको, 
जान लिया है उसने इसको।

हम भी इसके हैं दीवाने ,
सदियों से हिंदी को जाने ।

हिंदी की है बात निराली ,
फिर काहे ये बनी सवाली ।

जब-जब इसको बोला जाता ,
अक्स उभर कर सम्मुख आता ।

पल भर में सबको मोह लेती ,
सबके दिल को राहत देती ।

चलो साथियो पलट दें पासा ,
राज करे बस हिंदी भाषा ।,

हिंदी सबको प्यारी होगी,
इसकी छवि उजियारी होगी।

आओ हम सब अलख जगायें ,
जन-जन को ये बात बतायें ।

ऐसा कोई नियम बनायें ,
हिंदी को जो सब अपनायें ।

एक विनय तुम मेरी सुन लो ,
बस मन में इक बात ये बुन लो ।

अंग्रेजी को पास बिठाओ,
हिंदी बोलो मत शरमाओ ।

काम कराओ हिंदी में सब ,
सबक सिखाओ हिंदी में अब ।

हिंदी को सम्मान दिलाओ ,
भारत माँ का मुकुट बनाओ ।

दिल में हो बस एक ही आशा,
चले देश में हिंदी भाषा ।

मनमोहक माता की बिंदी,
प्रथम राष्ट्र भाषा हो हिंदी ।

Comments

Popular posts from this blog

भगवा है पहचान हमारी (70) हिन्दुत्व राष्ट्र

मेरा प्यार (90)

खट्टा-मीठा इश्क़...! [ COMING SOON MY NEW BOOK ] प्यार भरी नज़्में (मुक्त छंद काव्य)