पुण्यश्लोक मातोश्रीअहिल्या बाईं होल्कर
पुण्यश्लोक मातोश्री अहिल्या बाईं होल्कर
वर्ष तीन सौ पूर्व सुन, उतरी आत्मा एक।
तन से तो थी साध्वी, मन से थी वो नेक ।।
गीत
पुण्यश्लोक अहिल्या बाईं शिव की भक्त दिवानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।।
गाड़ दिया था झंडा जिसने, अपनी शौर्य कहानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।।
करने को उद्धार देश का, धरती पर प्रकटी बच्ची।
झूठ कपट सब दूर थे उससे, मन से थी बिल्कुल सच्ची ।।
जीव जंतु या पशु पक्षी हों, सबसे लाड़ लड़ाती थी।
बहना थी दो भाई की वो, उनसे होड़ लगाती थी।।
मात पिता की गुड़िया रानी , बकरी गाय चराती थी।
खेल खेल में सखियों को वो, अपने हुनर दिखाती थी।।
अपने सिर पर बांध के पगड़ी, न्यायाधीश बन जाती थी
बचपन में हीं यार अहिल्या, भौचक्का कर जाती थी।।
राज्य मालवा साम्राज्य की होने वाली रानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।
गाड़ दिया था झंडा जिसने, अपनी शौर्य कहानी का।।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।।[01] ।।
प्रान्त मालवा की महारानी, सुनो अहिल्या बाई थी।
जन जन के हृदय में उसने , अपनी जगह बनाई थी।।
खांडेराव की पत्नी थी वो, मालेराव की आई थी।
बेटी मुक्ताबाई की वो मात अहिल्या बाईं थीं ।।
सूबेदार मल्हार राव ने उसको निपुण बनाया था।
राजनीति और कूटनीति का उसने हर गुण पाया था।।
मालवा पर जब गोरों ने ,आ झण्डा फहराया था ।
धूल चटा कर अंग्रेजो को , उसने मार भगाया था।।
नानी याद दिलादे सबको, ऐसी इक वरदानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।।
गाड़ दिया था झंडा जिसने अपनी शौर्य कहानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।।[02] ।।
मात अहिल्या बाई होलकर क्या थी तुम्हें बताते हैं।।
अज़ब निराली बातेंउनकी, तुमको और सुनाते हैं ।।
लड़की लड़के के भेद भाव पर जिसने प्रश्न उठाया था।
उसने अपनी पूजा खातिर शिवलिंग अलग बनाया था
जिसने विधवा परंपरा को , जिद्द से अपनी तोड़ दिया।
पकमपक्की दोस्त को अपनी ला खुशियों से जोड़ दिया।।
तूफ़ानों से भिड़कर जिसने, अपनी शिक्षा पाई थी।
मालवा के मल्हार राव की सुनो वहीं सुनवाई थी।।
देश भक्त और प्रेम पुजारिन, अज़ब अनोखी रानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।
गाड़ दिया था झंडा जिसने अपनी शौर्य कहानी का।।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।। [03] ।।
आस्तीन में छुप कर बैठे , अपने थे गद्दार बहुत।
ऊपर से थे मित्र भक्त पर, भीतर से खूंखार बहुत।
कब हाथों में होगी गद्दी , इसी ताक में रहते वो।
मुस्लिम औ - अंग्रेज़ों से मिल, साज़िश रचते रहते वो।
जब जनता के मुद्दों पर ,जंग कोई छिड़ जाती थी।
युद्ध नीति का ज्ञान था पूरा ,दुश्मन से भिड़ जाती थी।।
बरछी ढाल - औ -थाम कटारी, घोड़ी पर चढ़ जाती वो।
एक अकेली अरि सेना पर पूरी धाक जमाती वो ।।
वंश होलकर की सुनबाई बिजली इक तूफ़ानी का ।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।
गाड़ दिया था झंडा जिसने अपनी शौर्य कहानी का।।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।। [04] ।।
धर्म औ आस्था का जिसने, मंगल दीप जलाया था।
विश्वनाथ काशी का मंदिर, उसने ही बनवाया था।।
पानी की किल्लत को समझा, कुएं बावड़ी बनवाए।
जिसको जहाँ जरूरत थी, उस जगह जलाशय खुदवाए।।
प्रेम समर्पण दया भाव से सेवा में जुट जाती थी।
महामारी में यार अहिल्या आप दवा बन जाती थी।।
प्रेम भाव से मात अहिल्या सब को कंठ लगा लेती ।
अपनी मीठी वाणी से वो अपना यार बना लेती।।
हर संकट को हरने वाली, मालवा की रानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।
गाड़ दिया था झंडा जिसने अपनी शौर्य कहानी का।।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।। [05] ।।
पति देव को नंदोई ने ,साजिश कर मरवाया था।
इक्कीस वर्ष की आयु में अपना श्रृंगार गँवाया था।
अपनी प्रजा देश की खातिर, सती प्रथा का त्याग किया।
चुन चुन कर फिर गद्दारों को, इस दुनिया से तार दिया।।
35वर्ष की आयु तक, अपना हर वंशज खो डाला।
मालवा के साम्राज्य को , मात अहिल्या ने पाला।।
मातो श्री अहिल्या बाईं, कह कर उसे बुलाते थे।
हाथ जोड़ नतमस्तक होकर, गीत उसी का गाते थे।।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।।
गाड़ दिया था झंडा जिसने अपनी शौर्य कहानी का।
सुनो सुनाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी इक मर्दानी का।। [06] ।।
© डॉ. प्रतिभा 'माही '
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