बोलो क्या सुनना चाहते हो तुम...? जो तुम कहदो वही सुनाऊं...!!! 21/03/2025


प्रेम सुनाऊं, हास्य सुनाऊं

                   वीरों की ललकार सुनाऊँ..!

दिल में लता प्यार सुनाऊं,

                   या सजता श्रृंगार सुनाऊँ...!!

कुदरत का हर रंग है यारो, 

                    हर र की मधुशाला है..!

भारत माँ के वाशिंदों की, 

                   यार कहो चीत्कार सुनाऊँ...!!



जो तुम कहदो वही सुनाऊँ...!!!

जो तुम कहदो वही सुनाऊँ...!!!


रूह से रूह का मिलन कराकर...!

रूहानी मंज़र दिखलाऊँ ...!

जो तुम कहदो वही सुनाऊँ...!!


गीत-ग़ज़ल मुक्तक सब कु है...!

कौन - कौन से रँग दिखलाऊँ..!

जो तुम कहदो वही सुनाऊँ....!!


मेरी र की पक्की यारी ..!

मिलना हो तो मैं मिलवाऊँ...!

जो तुम कहदो वही सुनाऊँ...!!

 

मैं गीत हूँ संगीत हूँ हर दिल में बजता राग हूँ।

गंगा की अमृत धार सी मैं बागवां का बाग हूँ ।।

है पर्वतों सा हौसला अरमान मेरे अर्श से।

मैं प्रेम हूँ मैं शान्ति हूँ जंगल की ओझल आग हूँ।।


ग़ज़ल 


मैं तो हूँ इक समंदर, राज़ों का राज़ हूँ।

कल और काल होंगे, लेकिन मैं आज हूँ।।

 

देकर चुनौती जग को पर्वत सी अड़ गई।

क्या सोचते हो बैठे, क़ुदरत का नाज़ हूँ।।

 

मैं ज़िंदगी तुम्हारी क्यूँ बदहबास तुम।

कर कर्म अच्छे जी लो, मैं सिर का ताज़ हूँ।।

 

जब मौत से मिलोगे, तब याद आऊँगी।

बे वक्त है जो गिरती, मैं वोही गाज़ हूँ।।

 

मुझको गले लगाले, मत वक्त को गँवा

आ थाम ले कलाई, 'माही' का साज़ हूँ।

 

© Dr Pratibha 'Mahi' Panchkula

 

 

 

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