ONLINE कवि सम्मेलन
अभी कुछ दिनों से डॉ० वीरेन्द्र सिंह चौहान जो कि हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष हैं, उन्होंंने एक नई पहल शुरू की है अर्थात online Kavi Sammelan का आगाज किया है पहला कवि सम्मेलन दिनांक 23 तीन 2020 को हुआ जिस की कुछ झलकियां देखिए---
बलिदान के खम्भों पर टिकी देश के अस्तित्व की ईमारत : डॉ. वीरेन्द्र चौहान
कोरोना की काली छाया में शहीदों के सम्मान में ऑनलाइन कवि गोष्ठी
कोरोना महामारी के कारण सार्वजनिक कार्यक्रमों पर लगी पाबंदी को देखते हुए ग्रामोदय अभियान की ओर से शहीदी दिवस के उपलक्ष में ऑनलाइन कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से कवियों ने डिजिटल प्रणाली का उपयोग करते हुए प्रतिभागिता की। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं ग्रामोदय अभियान के संयोजक डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान की अध्यक्षता में संपन्न इस अनूठे शहीद-ए-आजम भगत सिंह वह उनके साथियों के साथ-साथ देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी शहीदों को स्मरण किया गया। इस अवसर पर डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उसके अंग भूत नागरिकों की बलिदान देने की ताकत पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि भारत त्याग और बलिदान की भूमि है। अंग्रेजों और मुगलों के खिलाफ स्वाधीनता के संग्राम में लाखों हिंदुस्तानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी तो 1947 में स्वाधीनता प्राप्त होने के बाद से लेकर आज तक इसकी रक्षा के लिए भी मां भारती के हजारों लाल बलिदान हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ के सुकमा में दो रोज पहले वामपंथी नक्सलवादियों से लड़ते हुए बलिदान हुए 17 सुरक्षाकर्मियों की शहादत इसी श्रृंखला में आती है।
डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि चारों तरफ मुंह बाए खड़ी चुनौतियों और हम पर हावी होने की कोशिश कर रहे अंधकार को चीर कर हम सभी को प्रतिपल अरुणिम प्रभात के लिए काम करना है। घर,आंगन, गीत, कविता और जीवन के हर क्षेत्र में अरुणोदय लाना है :
घर के आंगन में अरुणोदय
जीवन में, मन में अरुणोदय
अरुणोदय चिंतन सरिता में
अरुणोदय सुर व कविता में
तम से भिड़ जाना अरुणोदय
ग़म को पी जाना अरुणोदय
अरुणोदय सहज उदित होना
अरुणोदय सहज मुदित होना
कवयित्रि डॉ० प्रतिभा माही ने भी कोरोना को भगाने को ले कर लिखा एक गीत पढ़ा ---
"कुरोना ने कुरोना को जा हाले दिल सुनाया है
सुनो मोदी के बन्दों ने हमें नीचा दिखाया है
सभी बच्चों व बूढ़ों ने बड़ा जमकर हमें पीटा
वतन के नौजवानों ने हमें मीलों भगाया है
रहे भूखे व प्यासे हम वहाँ चौबीस घण्टों से
नगाड़े ढोल बजवाकर कहें कितना नचाया है"
और साथ ही अनुच्छेद 370 की समाप्ति के कारन आये बदलावों को अपनी रचना में पिरोकर प्रस्तुत किया।
कवयित्री सविता सावी ने हरियाणवी और हिंदी में अपनी रचनाएँ पढ़ीं :
देश की खातिर मर मिट गे
ना सोची अपणी जान की
कर्ज़दार सै उन वीरां की
माटी हिंदुस्तान की।
असंध से कवि भारत भूषन वर्मा ने घनाक्षरी और छंदों में बंधी अपनी रचनाओं के जरिये शहीदों को नमन किया :
भगत सिंह जैसे कितने शेर मर कर फिर जन्म लेंगे
मगर उनकी शहादत से भूषण कब हम सबक लेंगे
अम्बाला की कवयित्री और अध्यापिका डॉ शिवा ने शहीदों को नमन करने के साथ साथ कोरोना के कारण बदले माहौल को शब्दों में पिरो कर बयान किया। शहीदों को समर्पित उनकी रचना कुछ यूँ थी :
प्यारा भारत देश हमारा
सोने की चिड़िया कहलाया
क्रांतिकारियों ने इसके मस्तक पर
अपने लहू से तिलक लगाया
देश भक्ति के सुरों के साथ पंचकूला की नीलम त्रिखा ने बेटी को समर्पित रचना का पाठ किया । शहीदों के सम्मान में पढ़ी उनकी रचना कुछ यूँ थी :
जिसको सींचा है लहू से मेरे वीर शहीदों ने
मेरे देश का अभिमान क़भी कम हो नहीं सकता
वतन के नाम है जीना वतन के नाम है मरना
तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न हो नहीं सकता
सोनीपत से ताल्लुक रखने वाले युवा कवि एडवोकेट सुमित दहिया ने बलात्कार के विभीषिका के कारण उपजने वाले समाज की पीड़ा को प्रकट करती अपनी रचना पढ़ी :
जबकि यह सार्वभौमिक सत्य है
कि आंकड़े ना कभी मरहम बने,ना पानी
आंकड़े उस माँ की छाती की ज्वाला
शांत नही कर सकते
इन आंकड़ों की यातनाओं में डूबना मृत्यु से आलिंगन जैसा है।
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