खट्टा-मीठा इश्क़...! [ COMING SOON MY NEW BOOK ] प्यार भरी नज़्में (मुक्त छंद काव्य)

                 मेरा इश्क़, ही इबादत
ये शब्द डूबे, इश्क़ में,  तेरा नाम, लिख रहे हैं।
हाँ आरजू में, बस तेरी ये, पैगाम , लिख रहे हैं ।।
है इश्क़ फ़ितरत, में मेरी, मेरा इश्क़, ही इबादत ।
बस ज़िंदगी के, फ़लसफों का, अंजाम, लिख रहे हैं।।


                    खट्टा-मीठा इश्क़...!
भुलाए नहीं...
भुलाया जा सकता...!
तेरा....
खट्टा-मीठा इश्क़...!
जो आगोश में भर मुझे...
कर देता है मदहोश..
आज भी...!!

चला आता है...
मेरे ख्वाबों की गली...
चुरा ले जाता है.... 
बिन छुए ही.... 
अपने आप से मुझे....
कर जाता है तन्हा...
दुनिया की भरी भीड़ में...!
रह जाती हूँ अकेली
होकर विदेह तेरी याद में...!
और क्या बताऊँ....!!!
भुलाए नहीं...
भुलाया जा सकता...!
तेरा....
खट्टा-मीठा इश्क़...!
जो आगोश में भर मुझे...
कर देता है मदहोश..
आज भी...!!

सुन यार...
चाहे भोर का उजाला हो...
या काली, अंधेरी रात का सन्नाटा...!
शाम का सुनहरा आलम हो....
या चाँद की चंदनियां....!
या फिर बिछी हो...
मेरे कदमों तले सितारों की...
मखमली चादर....!
हर नज़ारे में.... 
बस तू नज़र आता है...!!
जब कुछ और.... 
सोचना भी चाहूँ....
तो तेरा ख्याल....
मेरे दिल-औ-ज़हन में....
उतर आता है...!
और क्या-क्या सुनाऊँ....!!
भुलाए नहीं...
भुलाया जा सकता...!
तेरा....
खट्टा-मीठा इश्क़...!
जो आगोश में भर मुझे...
कर देता है मदहोश..
आज भी...!!

वो तेरा....
लबों पर सजाना....
और झिड़क देना कभी-कभी....!!
प्यार की तिजोरी से...
निकाल.....
बर्तनों सा पीटना पटकना....!
और अगले ही पल....
दिल से उठाकर...
फिर सजा लेना उसी तिजोरी में....!
ज़ख्म देकर....
मरहम लगाना....!
खुद भी रोना....
और मुझे भी रुलाना....!
फिर जकड़ प्यार की ज़ंजीरों में....
गले से लगा.... 
समा लेना अपने अन्तस में....!!!!
वो तेरा....
अज़ब-ग़ज़ब-अनोखा प्यार
बता 'माही' कैसे भूूलँ ...?
भुलाए नहीं...
भुलाया जा सकता...!
तेरा....
खट्टा-मीठा इश्क़...!
जो आगोश में भर मुझे...
कर देता है मदहोश..
आज भी...!!
       © Dr. Pratibha 'Mahi' Panchkula 




Comments

  1. वाह! बहुत खूब जी 💞💐💐👍

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