सरस्वती वन्दना
शरण खड़ी हूँ मात भारती तुम्हारी मैं
अपनी कृपा से झोली आज भर दीजिये...
लिखती हूँ, बोलती हूँ, जो भी काम करती हूँ
शब्दों में दाती शुद्ध भाव भर दीजिये....
सूफी संत सूर मीरा, जैसे झूम गाऊँ मैं
बुल्लेशाह सी प्रेम भक्ति, आन भर दीजिये....
जग को जगाने का जो, भार हमें सौंपा माँ
लेखनी में धार-औ-मिठास भर दीजिए..
© डॉ० प्रतिभा माही
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