अमूर्त प्रेम का चिंतन-मनन 【67】
सम्पूर्ण प्रकृति प्रेम को समर्पित है, प्रेम ही इस पूरी दुनियां का आधार है। प्रेम के बिना इस दुनियां का कोई अस्तिव नहीं रहेगा। जब दुनिया मे प्रेम की कमी होने लगेगी तो यह आहिस्ता -आहिस्ता तबाही की ओर अग्रसर होने लगेगी। इसलिए सभी से प्रेम करो, ये प्रेम ही आपको सही रास्ता दिखा सकता है क्योंकि प्रेम ही ईश्वर है। मेरी अन्तरात्मा द्वारा अवतरित इस दोहे ने मुझे " प्रेम " विषय पर लिखने के लिए प्रेरित किया --
" गुरु मिला-औ-रब मिला, मिला अनौखा प्यार।
मैं तो गद-गद हो गई, स्वप्न हुआ साकार।।"
मैंने ख़ुद को पढ़ना शुरू किया, और यह प्रक्रिया कई सालों तक चलती रही, फिर अपने आस-पास नज़र आने वाले प्रत्येक शख़्स से प्रेम से बात करना आरम्भ किया। ऐसा करने से हमें हर तरफ़ प्रेम ही नज़र आने लगा, हम घण्टों अकेले अपने आप मे हीं खोये रहते और तब हुआ, हमें सच्चे प्रेम का ज्ञान और पा लिया अपने रब को , अब वो सदा मेरे साथ मेरे पास रहता है। जब मुझे अपने इष्ट का साक्षात्कार हुआ, तब ही आज में प्रेंम का वर्णन कर पा रही हूँ और यह पंक्तियाँ
मेरे हृदय के उदगार व्यक्त करती हैं देखिए :---
" है सच्चाई एक यही बस कहती हूँ
मैं तो बस, अपने कान्हा संग रहती हूँ"
जिस तरह हवा का कोई स्वरूप व आकार नहीं होता, उसी तरह प्रेम का कोई स्वरूप या आकर नहीं होता , प्रेम निराकार ब्रह्म के समान है, अर्थात प्रेम ही रब है, ईश्वर है, ख़ुदा है। प्रेम एक ऐसा रंग है जो एक बार किसी पर चढ़ जाए तो सहज नहीं उतरता, ऐसे प्रेम में स्वार्थ नहीं होता, सिर्फ़ त्याग, बलिदान व समर्पण की भावना होती है, ऐसा प्रेम कभी अपने प्रेम को तकलीफ़ नहीं देता बल्कि अपने प्रेम के लिए मर मिटता है अर्थात ख़ुद क़ुर्बान हो जाता है अपने प्रेम पर आँच नहीं आने देता और ऐसा ही प्रेम अपने प्रेम में विलीन होने के लिए स्वमं को भूल जाता है , उसे सिर्फ़ अपना प्रेम ही नज़र आता है। ऐसा प्रेम अपने अस्तित्व को खोकर अपने इष्ट प्रेम में समाहित हो जाता है ।
जिसने प्रेम को जान लिया और उसे पा लिया, तो समझो उसने रब को पा लिया। प्रेम कहीं भी , कभी भी, किसी भी वस्तु या जीव - जन्तु, जड़ - चेतन इत्यादि से हो जाता है और यही प्रेम जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचता है तो रूहानियत में बदल जाता है , इसी को सूफ़ियाना इश्क़ कहते हैं और ऐसे इश्क़ में प्रेमी झूमने व नाचने लगता है। मस्त मौला, आनन्द में मग्न, पागलों की भाँति अपने इष्ट का नाम लेकर गली-गली बे ख़बर हो घूमने लगता है, उसे समाज की, दुनियां की, लोगों की परवाह नही रहती। ऐसे ही प्रेम को दर्शाती है मेरी पुस्तक "इश्क नचाये गली-गली" ( सूफ़ी गीत व भजन) जो मेरे प्रेम को मेरे इष्ट देव के प्रति दर्शाती है। एक छोटी सी झलक देखें:----
"श्याम सलौना रूप है इसका , मन मोहन कहलाता है...
चूम लबों से बजा बाँसुरी , सबकी नींद उड़ाता है....
झूम रही है सारी दुनियां ...
जाने कैसी हवा चली ....
ये इश्क़ नचाए गली गली...… "
ऐसा ही प्रेम मीराबाई ने अपने गिरधर से किया और अन्त में अपने प्रेम में हीं विलीन हो गई। मीराबाई ने कहा :
"मेरे तो गिरिधर गोपाल, है दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो तो पति सोई"
एक और बानगी देखें :
"ऐरी मैं तौ प्रेम दीवानी,
मेरो दरद न जाणे कोय...
नभ मण्डल पर सेज पिया की,
किस विधि मिलना होय....
ऐसा ही प्रेम संत कबीरदास जी का था, कबीर सूफ़ीवाद के कवि रहे, जिनके निराकार प्रेम की पराकाष्ठा देखिए:--
"जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देख्या माँहि॥"
कबीर का एक और रंग देखें;---
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आख़र प्रेम का, पढ़ै सु पंडित होय॥"
ऐसा ही प्रेम सन्त बुल्लेशाह, सन्त दादू, रैदास, गुरुनानक, रामभक्त तुलसीदास , कृष्णभक्त सूरदास व रसखान, इत्यादि का भी रहा। जो अपने प्रेम छाप इस दुनियां के दिलों पर छोड़ गए। उनके सूफ़ी गीत व छन्द आज दुनियाँ में गूँजते हैं। दोस्तो मैं भी उनके ही पद कमलों पर चल कर अपने इस जीवन को धन्य बनाने का प्रयास कर रही हूँ।
प्रेम को व्यक्त करने के लिए दुनियाँ में लोगों ने अपने मन भावन अलग - अलग तरीकों को अपनाया है ,किसी ने इन्द्रधनुष के सात रंगों का प्रयोग करके , कागज़ के धरातल पर अपना प्रेम उड़ेल दिया है, तो किसी ने तानसेन बनकर सरगम के सात सुरों को सँजोकर अपने प्रेम से सभी को सराबोर कर दिया है, और कहीं किसी ने शब्दों को लड़ियों में पिरोकर कविता-गीत-ग़ज़ल इत्यादि के द्वारा प्रेम का वर्णन किया है।
प्रेम - इश्क़ - मुहब्बत गर ख़ुदा से हो जाये तो तन मन झूमने लगता है और बिना किसी की चिंता - फिक्र किये मस्त - मौला हो बुल्लेशाह व प्रभु चैतन्य जी की भाँति नाचने लगता है। यही भाव लिए आ रही है मेरी सातवीं पुस्तक "इश्क़ नचाये गली-गली" इसमें सूफ़ी व भक्ति रस के गीतों का समावेश है। सभी गीत अनन्य अलंकारों से अलंकृत हैं तथा प्रेम की पराकाष्ठा को व्यक्त करते हुये दिल की गहराइयों में उतर मन को शीतलता प्रदान करते हैं। जब यह गीत मुझे इतना आनन्दित कर झूमने विवश कर देते हैं तो आपके दिल में उतर आपके मन को भी शान्ति प्रदान करेंगे। ऐसा मुझे विश्वास है, तो लीजिए अपनी यह पुस्तक "इश्क़ नचाये गली-गली" भी आपको शुभकामनाओं सहित समर्पित करती हूँ।
डॉ० प्रतिभा 'माही' पंचकूला (हरियाणा)
(सूफ़ी कवयित्री, ग़ज़लकार, गीतकार व साहित्यसर्जक )
मो० न० 8800117246
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