एक हसीं मुलाकात-- लघु उपन्यास (68)

             "यह (लघु उपन्यास) मेरी काल्पनिक रचना है सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी व रची गयी है। इसमें शामिल किए गए सभी पात्र, पत्रों के नाम, घटना, स्थान,भावनायें, विचार व संवाद  सभी काल्पनिक हैं। यदि इसमें किसी पात्र का नाम घटना, स्थान इत्यादि में कोई समानता पाई जाती है तो वह सिर्फ एक संयोग मात्र है। यह पूरी कहानी काल्पनिक है ।"
                     एक हसीं मुलाकात

                           भाग【01】

                ( मनीषा गाड़ी से उतर दबे पाँव आगे बढ़ने लगी,  मन में अनगिनत ख्याल आ रहै थे। वह दरवाजे के पास पहुँची,  यह क्या...?  वह घंटी बजाती या दस्तक देती,  उससे पहले ही दरवाजा खुला और कानों में एक मधुर आवाज़ सुनाई दी) -

 प्रतीक:     "मनीषा आओ - यह  है अपना गरीब खाना।" 

      (मनीषा आगे बढती है...प्रतीक उसकी कमर में अपना एक हाथ डालते हुए पूछता है) -

प्रतीक:    "कैसी हो..?" 

      (साथ ही मनीषा का हाथ भी सहसा प्रतीक की कमर की ओर बढ़ जाता है और उसके मुख से शब्द निकलते हैं) - 

मनीषा:    "मैं ठीक हूँ" ।

      ( मनीषा लिविंग रूम में बैठती, उससे पहले प्रतीक अपने घर में अंदर की ओर चला जाता है । दूर से प्रतीक की आवाज़ आती है..! ) -

प्रतीक:     मनीषा इधर ही आ जाओ स्टूडियो में..... मैं अधिकतर यहीं बैठता हूँ।

      (मनीषा आहिस्ता - आहिस्ता अंदर की ओर आगे बढ़ती है...! ) -

प्रतीक :    आओ यहीं बैठते हैं... और सुनाओ... क्या चल रहा है...? 

मनीषा :  ( सोफे पर बैठते हुए ) कुछ नहीं.... बस तुमसे मिलने की चाहत थी... तो आ गई..! आज भगवान ने मौका दे ही दिया तुमसे मिलने का।
      
      ( प्रतीक बिल्कुल शांत बैठा अपना मोबाइल देख रहा था... उसी वक्त "अपने साथ लाई, एक गिफ्ट पैक" मनीषा, प्रतीक की तरफ़ बढ़ाती है...) -

प्रतीक : अरे यह क्यों...? ( मुस्कुराकर गिफ्ट पैक हाथ में लेते हुए )

      ( इतना कहकर प्रतीक फिर अपना मोबाइल देखने लगता है। मनीषा की चंचल नजरें, उस कमरे का मुआयना करने लगती हैं, उस कमरे में मनीषा को एक अजीब सी सकारात्मक उर्जा का एहसास होता है। दीवार पर ऐसी कई तस्वीरें लगीं हैं, जो मनीषा के मन को आकर्षित कर, एक पॉजिटिव एनर्जी उसकी तरफ़ छोड़ रहीं हैं। दूसरी तरफ़ साथ ही गायत्री मंत्र भी धीमी आवाज़ में, उसके कानों में मधुर रस घोल रहा है।

      मनीषा अब भी शांत बैठी है.. किन्तु उसकी आँखें, उस कमरे में अठखेलियाँ कर रहीं हैं। उसका मन अपनी ही उधेड़बुन में लगा हुआ है, कुछ प्यार भरे एहसासों की कहानी गढ़ रहा है। मनीषा वहीं बैठे-बैठे सोचने लगती है कि उसकी प्रतीक से पहली मुलाक़ात कब-कैसे-कहाँ हुई थी....? )

    मनीषा और प्रतीक के प्यार भरे एहसासों की कहानी का श्रीगणेश केसे हुआ...? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग....2 )
 
                         ★★★★★★★

                            ।भाग 【02】
                                
       मनीषा बैठे-बैठे अपनी मुलाकातों के खयालों में गुम हो जाती है....वहीं पहुँच जाती है.... जहाँ से उनकी कहानी शुरुवात हुई थी...!)

        मनीषा और प्रतीक गायक हैं। दोनों एक कार्यक्रम में 4 महीने पहले मिले थे। दोनों एक दूसरे के ऑपोजिट फ्रंट लाइन में बैठे हुए थे, दोनों की जब पहली बार नजरें मिली, तो उनकी नज़रें एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह पा रही थी। बार-बार मनीषा और प्रतीक की नज़र एक दूजे पर जाकर टिक जाती थी। दोनों की ही नज़रें एक दूसरे के साथ चोरी - चोरी  अठखेलियाँ कर रहीं थीं, अर्थात खेल रहीं थीं।

      ( कार्यक्रम समाप्त होता है और सभी खाना खाने चले जाते हैं। मनीषा और प्रतीक की नजरें एक दूजे को अब भी तलाश कर रही हैं, तभी दोनों आमने-सामने रूबरू हो अपना-अपना परिचय एक दूसरे को देते हैं। उस वक़्त दोनों चाय पी रहे होते हैं.....! )
     
मनीषा:     ( प्रतीक के समीप आकर पूछती है...) आपका शुभ नाम...? 

प्रतीक:     (मनीषा से अपनी नज़रें मिलाते हुये...) जी प्रतीक...! और आपका....?

मनीषा:     (मुस्कराते हुए नज़र से नज़र मिलाकर....)   मैं मनीषा पटेल ....! आप इस फील्ड में कब से है...? इससे पहले आपसे कभी मुलाकात नहीं हुई..! कुछ अपने बारे में बताइए...)

प्रतीक:     (चाय का मग टेबल पर रखते हुए...) जी.. लगभग दो-तीन सालों से हूँ इस फील्ड में...! आना तो बहुत पहले चाहता था, मगर आ नहीं पाया। तब कुछ मज़बूरियां रहीं, तो मौका हाथ से निकल गया....! किंतु अब मैं...अपने इस शौक को बहुत ऊँचाइयों तक ले जाना चाहता हूँ....! मैं पहली बार यहाँ आया हूँ, इससे पहले चन्द कार्यक्रम और किये हैं....! लगता है अब हमारी मुलाकात होती रहेगी....! आप भी अपने बारे में कुछ बताएँ.....!

मनीषा (थोड़ा रुककर एक गहरी सांस लेते हुए...) आप बहुत अच्छा गाते हैं... आपकी प्रस्तुति मनमोहक रही...!

प्रतीक:   ( मुस्कुराते हुए...) जी धन्यवाद ... आप भी लाजवाब गाती हैं.... आपकी मधुर आवाज़ में एक अलग सी खनक है ... जो सीधी दिलो में उतर जाए....! आपकी आवाज़ किसी को भी मोहित कर सकती है।  लगता है आप काफी लम्बे अर्से से इस फील्ड में हैं....!
     (मनीषा भी अपना चाय का मग टेबल पर रखती है... दोनों अपनी कुर्सी से उठते हैं ...... और भीड़ से निकल बाहर आ जाते हैं.....! ) 

मनीषा   ( साथ चलते-चलते अपनी बात शुरू करती है....! ) प्रतीक जी आपसे मिल कर बहुत अच्छा लगा ......! 

प्रतीक:     जी...मुझे भी....! आपने बताया नही अपने बारे में...! कुछ बताएँ,.....!
       ( मनीषा चलते-चलते साइड से रुक जाती है....! पास ही खड़ी अपनी गाड़ी में पर्स रखती है ....और गाड़ी का दरवाजा बंद कर....वहीं खड़े-खड़े कहती है....)

मनीषा    इस फील्ड में बहुत लम्बे समय  से हूँ.... ईश्वर की कृपा से अब तक दर्जनों प्रस्तुतियाँ दे चुकी हूँ.... लगभग बीस साल हो गए होंगे। ( तभी मनीषा के मोबाइल पर घण्टी बजती है .... ) प्रतीक जी... घर से बेटी का फोन है। मुझे जल्दी निकलना होगा। बातें तो बहुत सारी हैं....फिर कभी बैठते हैं.....! तब करेंगे बाकी वार्तालाप....!

प्रतीक:     जी...ज़रूर .....! ( प्रतीक अपना विजिटिंग कार्ड मनीषा के हाथ मे थमा देता है....और हाथ मिलाते हुए कहता है...) फिर मिलते हैं....!   Good bye...! 

मनीषा   (गाड़ी आगे बढ़ाते हुए ...) bye.... 
( इतना कहकर... दोनों अपने-अपने घर चले जाते हैं...)

              वक्त का पहिया आगे बढ़ता रहा, दोनों अपने-अपने कार्यों के साथ आगे बढ़ रहे थे। काफ़ी लम्बे समय से दोनों की कोई बात नहीं हुई.... लगभग तीन महीने गुज़र गए थे...!

( क्या..? मनीषा पुनः कभी प्रतीक से मिल पाएगी..... या यह प्रेम कहानी अधूरी ही रह जायेगी...!
जानने के लिए देखें.. भाग-3)

                      ★★★★★★★

                         भाग【03】
      फिर अचानक... एक प्रोग्राम में मनीषा की मुलाकात प्रतीक से पुनः हुई....वह प्रतीक को देख बहुत खुश हुईं.... उसके मुख पर एक अलग ही नूर झलक रहा था...! प्रतीक के होठों पर भी मुस्कान साफ नज़र आ रही थी.....आज भी दोनों की नजरें एक दूसरे को ही चोरी-चोरी निहार रहीं थीं.....! किंतु इस कार्यक्रम में दोनों की आपस मे कोई बात नहीं हो पाई...क्योंकि प्रतीक किसी ज़रूरी काम से पहले ही प्रोग्राम से चला गया था....!       

       एक दिन मनीषा ने प्रतीक को मैसेज किया कि मुझे आपसे बात करनी है, जब भी आप फ्री हों, तो प्लीज बताएँ। प्रतीक ने मैसेज में सिर्फ ओके कहकर बात खत्म कर दी।

       इधर मनीषा के दिल में प्रतीक के लिए मोहब्बत कुलाचें भरने लगती है...! वह उससे बात करने के लिए बार-बार संपर्क करती है, परंतु बात नहीं हो पाती...! 
     
      फिर एक दिन, रात को 12:00 बजे, मनीषा... प्रतीक को कॉल करती है...! प्रतीक अकेला रहता है, वह रसोई में खड़ा अपने लिए कॉफी बना रहा है....! तभी फोन की घण्टी बजती है:...
     (वह कॉफी बनाते-बनाते कॉल उठा लेता है और उसका स्पीकर ओन कर लेता है ...) 
प्रतीक:     हेलो.....कौन....?

मनीषा   हेलो ....! मैं मनीषा पटेल ....! याद करो....हम तीन महीने पहले एक ईवेंट पर मिले थे....!

प्रतीक:     (मग में कॉफी डालते हुए..) हाँ... याद आया... कैसी हैं आप...?

मनीषा   जी ...ठीक हूँ....! और बताइए क्या चल रहा है..?

प्रतीक:     (कॉफ़ी का मग लेकर अपने कमरे में सोफे पर बैठते हुए...) बस अभी कॉफी बनाकर लाया हूँ.....! 

मनीषा    क्यूँ आपकी मैडम कहाँ हैं.... उन्होंने कॉफ़ी नहीं बनाई......!

प्रतीक:     अरे कहाँ.....?  मैं अकेला ही रहता हूँ ...! वो बच्चों के साथ अलग रहती है....! 

मनीषा:     ओह.....! सोरी.....!

प्रतीक:     कोई बात नहीं....! मुझे तो अकेले ही रहना अच्छा लगता है....! और आप बताएँ....! कैसे...? मुझ नाचीज़ को, याद फ़रमाया आपने.....!

मनीषा     (बिस्तर पर लेटते हुए ...) बस कुछ बात करनी थी....आपसे, कुछ मन की बात.....!

प्रतीक:      बोलो.....आप जो भी कहना चाहती हैं....! मैं सुन रहा हूँ....!

मनीषा    (बिस्तर पर लेटे- लेटे..) मुझे ऐसा महसूस होता है कि हम पहले भी कहीं मिल चुके हैं, इस जन्म में हीं नहीं, बल्कि पिछले अनेकानेक जन्मों में। मेरी रूह आपको महसूस कर पा रही है।" 

प्रतीक:     (मनीषा की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहता है...) मुझे भी ऐसा ही प्रतीत हुआ, हाँ...ऐसा हो भी सकता है। तुम्हें क्या महसूस हो रहा है.....! 

मनीषा    पता नही.....! मन बस तुम्हारी ओर खिंचा जा रहा है... ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कोई अदृश्य शक्ति मुझे तुम्हारी तरफ खींच रही है....! 

       ( अब दोनों बात करते-करते 'आप' से 'तुम' पर आ गये थे ...! इस तरह काफी देर  तक बात चलती रही .... ! फिर घर परिवार की जानकारी लेकर.... बात खत्म कर सो गए ...)
       
      कुछ दिनों के बाद मनीषा फिर प्रतीक को फोन करती है...! प्रतीक फोन उठाता है और हेलो करता है...! प्रतीक की आवाज सुनकर मनीषा के दिल को सुकून मिलता है। फिर देर रात तक उनकी काफी लंबी बात होती रहती है.... इसी बीच मनीषा.. प्रतीक से रूबरू मिलने की बात कहती है...!
तो प्रतीक कहता है - ठीक है...! तुम मेरे घर आ जाना....)

         मनीषा रूबरू मिलने की बात से बहुत खुश थी... उसका दिल खुले गगन में उड़ता फिर रहा था...! यह थी अनीषा की ख्यालों की कहानी.....!

        मनीषा जब अपने ही ख्यालों में गुम थी, तभी फोन की घंटी बजी, घंटी की आवाज सुन मनीषा अपने ख्यालों से बाहर आई......!

        उसी वक़्त प्रतीक की आवाज उसके कानों में पड़ती है, तुम बैठो मैं अभी दो मिनट में आता हूँ। प्रतीक फोन पर बात करने दूसरे कमरे में चला जाता है।

            (अब  चलते हैं वहीं पहले भाग की कहानी में...  जहाँ मनीषा अपने प्यार का इजहार  करने वाली है ..... और  उसका  प्रतीक पर क्या असर होता है....?  मनीषा  कैसे  करती है इज़हार.......? 
जानने के लिए देखिए - भाग- 04)

                            ★★★★★★★

                                 भाग【04】
                            

      मनीषा अब कमरे में अकेली थी, उसने चारों तरफ कमरे में अपनी नज़र घुमाई और एक लंबी सांस ली। अब मनीषा सोच रही थी कि मैं प्रतीक से क्या कहूं....? कहाँ से बात शुरू करुँ..?

       तभी प्रतीक कमरे में वापस आकर सामने सोफे पर बैठ जाता है, बिना कुछ बोले मनीषा उसकी तरफ प्यार भरी नज़र से देखते - देखते एक ही झटके से 3 शब्द बोल देती है...!
    
मनीषा    "आई लव यू "..!

प्रतीक:    (चौकते हुए....) क्या...? फिर से बोलो .....! क्या बोला तुमने....?

मनीषा   मैंने जो बोलना था.... बोल दिया....! अब तुमने नहीं सुना... तो मैं क्या करुँ...? अब दोबारा नहीं बोलूँगी...!

प्रतीक:    (मुस्कुराते हुए...) हाँ सुना मैंने...
पर मुझे इस तरह की कोई उम्मीद नहीं थी.....! तुमने अचानक कहा... तो सोच में पड़ गया..!    
 
मनीषा   प्रतीक...! एक बात पूछूँ क्या......? तुम मुझे एक जादू की झप्पी दे सकते हो...? मैं आपको गले मिलना चाहती हूँ। 
       
प्रतीक:     (मुस्कुराते हुए बाएं फैलाकर...) हाँ ज़रूर....! आओ ना यार...!

        मनीषा उठ कर खड़ी होती है और प्रतीक के गले से लिपट जाती है, दोनों एक दूसरे की पीठ पर हाथ फेरते रहते हैं...! ऐसा प्रतीत हो रहा हैं कि न जाने कितनी सदियों से बिछड़ी हुई दो आत्माएं एकसाध हो रही हैं....!

        प्रतीक के मन में न जाने क्या डर है.... जो वह खुलकर कुछ कह नहीं पा रहा है, बस मनीषा को गले से लगाए उसकी पीठ पर हाथ फेरे जा रहा है...!
     
        इसी बीच मनीषा प्रतीक के ललाट पर एक चुंबन जड़ देती है...! प्रतीक फिर भी शान्त रहता है....!
      (मनीषा फिर से बोल पड़ती है.....)

मनीषा     मुझे ऐसा लगता है जैसे.. हमारा कोई पुराना रिश्ता है, तुमसे मिलकर मुझे बहुत सुकून मिला है.....!

प्रतीक तो अब भी कुछ नहीं बोला .... शांत है.....! बस मनीषा को गले लगाये उसके प्यार भरे एहसास में गुम है.....!
     और मनीषा.... लव यू कहते-कहते प्रतीक के कपोलों पर अपने गुलाबी लव चिपका देती है....! और यकायक.... प्रतीक मनीषा को छोड़... पीछे हट जाता है....!

प्रतीक:     (रसोई की तरफ जाते हुए....) तुम कुछ लोगी, चाय बनाऊँ....? 

मनीषा    (सोफे पर बैठती हुए...) अभी मन नहीं है, कुछ पीने का...! 

      (मनीषा तो प्रतीक से बेपनाह प्यार करती है। वह प्रतीक के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है। लेकिन प्रतीक इस बात को अभी समझ नहीं पा रहा है। उसके मन में कोई डर डेरा जमाये बैठा है.....)

      प्रतीक को किसी की कॉल आने का इंतजार है क्योंकि उसे कहीं जाना है...! वह भी मनीषा के पास आकर बैठ जाता है...!

      थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजती है और प्रतीक बाहर की ओर चला जाता है। कोई आया था, दरवाजे पर....? 

      प्रतीक दरवाजा खोलता है और उसे अंदर आने के लिए कहता है। बाहर वाले कमरे में उसे बिठाकर उससे बात करने लगता है। 

 (क्या मनीषा और प्रतीक का प्यार सिरे चढ़ेगा ...या मिलन अधूरा ही रह जाएगा .....
जानते हैं के लिए देखिए ....भाग - 05 )
    
                           ★★★★★★★

                             भाग 【05】
                          
             मनीषा अंदर के कमरे में अकेली रह जाती है। वह सोचने लगी कि अब प्रतीक कहीं व्यस्त ना हो जाए और आज की यह मुलाकात अधूरी ही रह न जाए। अभी तो बहुत सारी बातें करनी है मुझे प्रतीक से.....! मनीषा अपने रब को मनाने लगती है और रब से कहती है कि प्रतीक को दो-तीन घंटे के लिए फ्री कर दो ताकि मैं उससे सकून से मिल सकूँ। उसके जो भी कार्य हैं वह सभी 3 घंटे आगे बढ़ा दो....! 

      फिर क्या था...? रब ने मनीषा की अर्जी स्वीकार कर ली। प्रतीक शीघ्र ही फ्री होकर मनीषा के पास अंदर के कमरे में आ जाता है, जो व्यक्ति आया था, वह भी वापस चला गया था। 
(मनीषा मन ही मन बहुत खुश होती है और  प्रतीक के नजदीक जाकर बैठ जाती है ....)

 प्रतीक:       (मनीषा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए....) तुम्हारे हाथ तो बहुत छोटे हैं....बच्चों की तरह....!
(अब फिर से दोनों में वार्तालाप शुरू हो जाती है...)

मनीषा  (प्रतीक के कंधे पर सिर रखते हुए कहती है...) मैं तो तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ ..... पर तुम्हारे दिल में क्या है....? वह तुम जानो ..... !  तुम प्यार करते हो या नहीं.......!
       (इस बात पर प्रतीक मुस्कुरा दिया और इधर-उधर चीजों को निहारने लगा...)

मनीषा      (प्रतीक के हाथ को सहलाते हुए ने ....) तुम्हारे हाथ तो बहुत ठंडे हैं, मैं गर्म कर दूँ....?

              (प्रतीक सिर हिला कर इज़ाज़त दे देता है...! मनीषा ने प्रतीक के हाथ को अपने हाथों में लेकर रगड़ना शुरू किया ...! और ..... बोली , जो बात दिल में हो, कह देनी चाहिए ......! मैंने तो कह दी, अब तुम भी कह दो ।
        और....!. 
        जो कुछ मन करने को कहता है, कर लेना चाहिए। 
        फिर क्या था...? प्रतीक उठा और  मनीषा  के पास आ गया, उसी सोफे पर बैठ गया, जहां मनीषा बैठी थी।)
        
प्रतीक:     (सोफे पर बैठते हुए ....मनीषा को अपनी बाहों में समेट लिया....और बोला.....) चलो यार फिर वह कर लेते हैं, जो मन कहता है.....!
मनीषा:     और..मन क्या कहता है..?

प्रतीक:      बताता हूं...! तनिक और करीब आओ ना...!

               (अब क्या था दोनों का इश्क़ कुलाचें मारने लगा...दोनों रूहों को एक दूसरे की इज़ाजत मिल गयी थी)
        और फिर प्रतीक ने मनीषा के मुखड़े को अपने हाथों में लेकर.... उसके गुलाबी लबों की, दोनों रसभरी पंखड़ियों को, अपने होठों से चूम लिया ..! मनीषा भी प्रतीक के आगोश में समाती चली गई....!
          धीरे-धीरे आहिस्ता-आहिस्ता प्रतीक, पर्वतों की यात्रा करते हुए झील की गहराई में उतर, क्रीड़ा करते-करते गोते खाने लगा....! प्रतीक की उंगलियां मनीषा की बांसुरी  के  नन्हें-नन्हें छिद्रों पर अपने सुरों की तान छेड़ने लगी...! दोनो का प्रेम सर से पाँव तक नृत्य करने लगा। 
मनीषा का रोम-रोम मदहोश हो चला था, अब उसका मन अमृत की खोज में भटकने लगा...! जिसकी हर जीव को ज़रूरत है, जो इस सृष्टि की रचना का आधार है...! 
        तब ही ..... यकायक वह अमृत का कमंडल, उसे मिल गया...! जो उसके हृदय में प्रज्वलित अग्नि  को बुझा सकता था।  
           कमंडल हाथ में आते ही.... दोनों ने अपने हृदय की अग्नि को शांत किया...! और फिर तृप्त हो समा गए अपने ही अस्तित्व में.! अर्थात शून्य हो गये...! 
           बड़ा ही अद्भुत दृश्य था....जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। तृप्त होने के बाद मनीषा अपने घर वापस लौट गई...! पुन मिलने का वादा करके....! 

      प्यार देने आई थी......
      प्यार देकर चली गई ... 
      अपने मुर्शिद यार का..... 
      एहसास ले कर चली गई....... 

           मनीषा वो बिछड़ी हुई रूह थी, जो सदियों से अपने अस्तित्व की तलाश में भटक रही थी....जो उसे इस जन्म में प्रतीक में रूप में मिला.....!

  ( "बड़ा ही अनुपम मिलन था... दो रूहों का, जहाँ कोई गिला शिकवा नहीं, पूर्व जन्म में बिछड़ी मनीषा व प्रतीक की रूहें अब इस जन्म में फिर से मिली है......!! देखें अब आगे क्या होता है.....?")

                             ★★★★★★★

© डॉ० प्रतिभा 'माही' (8800117246)

Comments

  1. Replies
    1. शुक्रिया जी 💐💐💐आप अन्य पोस्ट भी मेरी पड़े और बताएं कि आपको कैसी लगी

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  2. सादर नमन आ.मा ही जी ,अद्भूत कहानी 👏👏👏👏👏👏👏👏🙏🙏

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    1. नीरजा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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  3. अप्रतिम कथा वस्तु ,अनुपम प्यार
    आगे क्या हुआ जानने का इंतजार 🙏🙏
    👌👌👌👌✍️✍️✍️✍️👏👏👏🙏

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    1. सही कहा आपने प्यार पर हो तो सारी दुनिया ही टिकी हुई है

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  4. प्रेम की चरम पराकाष्ठा , प्रेम दो आत्माओं का मिलन👏👏👏👏🙏

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  5. थैंक्स शुक्रिया आभार💐💐💐💐

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