तिरंगा (76)
हम सभी रूहें हैं अविनाशी….! Bk
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है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव ,
हम उसी लोक के वासी हैं ….
हम सभी रूहें अविनाशी हैं...!
आ पवन बलाएँ लेती है,
खग-मृग सब करते हैं नरतन...!
आ कर के तबस्सुम नाच उठी
टूटा हर इक अपना बन्धन...!
है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव ,
हम उसी लोक के वासी हैं ….
हम सभी रूहें अविनाशी हैं...!
बस लींन हुए हम 'माही' में,
अब बरस रहा हरसूं कुमकुम...!
हम गुथे हुए हैं, चोटी से,
हुए सिफ़र में जाकर गुम---!
है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव ,
हम उसी लोक के वासी हैं ….
हम सभी रूहें अविनाशी हैं...!
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आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा
स्वर्ग के सुंदर महलों का ये राजा हमें बनाएगा
स्वर्ग नरक है इसी धरा पर, परमपिता ये कहते हैं
पहले भी स्वर्णिम था भारत, फिर स्वर्णिम बन जाएगा
तुम्हीं आदी अनन्ता हो, तुम्हारी बात अलग बाबा
खड़ा हर कोई दर पर आ, तुम्हारा साथ अलग बाबा
मसीहा हो सभी के तुम, सभी की पीर हरते हो
तुम्हें पाकर हूँ आनंदित, मिली सौगात अलग बाबा
कमजोर नहीं हैं, नारी हैं।
इकलौते सब पर भारी हैं।।
हल्के में मत लेना यारो,
हम सुलघी इक चिंगारी हैं।
भारत मां की बेटी है हम,
दुश्मन की खातिर आरी हैं ।
ममता झरती है आंखों से,
फूलों की हम फुलवारी हैं।
शिव बाबा आन बसे "माही"
परिवर्तन घर-घर जारी हैं।
श्री राम बसे "माही" हर दिल ,
परिवर्तन घर-घर जारी हैं।
जिसे तुम याद करते हो, वो मेरे पास रहता है...
मेरी बातें भी सुनता है, वो अपनी बात कहता है...
सुनो शिव नाम है उसका, मुझे वो शिवपिया कहता...
मैं उसके रूप की कायल, मेरी नस-नस में बहता है....
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