जां निकलने से से पहले चले आओ तुम



भीड़ में भी रहे हम अकेले  बहुत...!!

रंग कुदरत के हमने भी देखे बहुत...!

डूब कर इश्क़ में हमने पाया जिसे..!

उसके दुनिया में लगते हैं मेले बहुत...!!

 

 

जब जनाज़ा मेरा वो उठाने लगे।

तार धड़कन के यूं गुनगुनाने लगे।।

थोड़ा ठहरो अभी उनको आने तो दो।

वो तो माही को अपने बुलाने लगे।।

 

 *ग़ज़ल*

 

जां  निकलने से से पहले  चले आओ तुम।।

जिस्म जलने से पहले  चले आओ तुम।।

 

वक्त कटता नही डसती तन्हाई है।

मन मचलने से पहले  चले आओ तुम।।

 

अश्क़ झरते  नहीं देह पथरा गई।

तन बदलने से पहले  चले आओ तुम।।

 

मर जाएं कहीं आरज़ू ले तेरी।

रूह के चलने से पहले  चले आओ तुम।।

 

माना मजबूर हो, 'माही' तुम दूर  हो।

वक़्त ढलने से पहले  चले आओ तुम।।

 

© Dr Pratibha 'Mahi' Panchkula

{10/4/2024}

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