【01】समझना मत मुझे अबला 【महिला दिवस मुबारक हो】
उठाकर रुख से हर पर्दा, नज़ारे सब दिखा दूँ,
समझना मत मुझे अबला, कयामत मैं बुला दूँगी
भले कमज़ोर हूँ तन से, मगर फौलाद सी हूँ मैं
दरिन्दों की हुकूमत को, मैं माटी में मिला दूँगी
समझता है ख़ुदा खुदको, कभी खुद से मिला है क्या
ख़ुदा की हर खुदाई का, सबब तुझको सिखा दूँगी
अरे इन्सां सँभल जा अब, तुझे मौका मैं देती हूँ
नहीं सँभला अगर तू अब, तो तांडव मैं मचा दूँगी
तेरी औकात है क्या सुन, जन्म देती यही महिला
मैं 'माही' रब की दूती हूँ, नया मंज़र सजा दूँगी
©®डॉ०प्रतिभा 'माही'
बोहोत अछा लिखा है। 🙏
ReplyDeleteबहुत खूब 👏👏
ReplyDeleteThanks
Deleteबेहतरीन रचना
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