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Showing posts from 2022

अमूर्त प्रेम का चिंतन-मनन 【67】

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                           सम्पूर्ण प्रकृति प्रेम को समर्पित है, प्रेम ही इस पूरी दुनियां का आधार है। प्रेम के बिना इस दुनियां का कोई अस्तिव नहीं रहेगा। जब दुनिया मे प्रेम की कमी होने लगेगी तो यह आहिस्ता -आहिस्ता तबाही की ओर अग्रसर होने लगेगी। इसलिए सभी से प्रेम करो, ये प्रेम ही आपको सही रास्ता दिखा सकता है क्योंकि प्रेम ही ईश्वर है।  मेरी अन्तरात्मा द्वारा  अवतरित इस दोहे ने मुझे " प्रेम "  विषय पर लिखने के लिए प्रेरित किया --                     " गुरु मिला-औ-रब मिला, मिला अनौखा प्यार।           मैं तो गद-गद हो गई, स्वप्न हुआ साकार।।"                मैंने ख़ुद को पढ़ना शुरू किया, और यह प्रक्रिया कई सालों तक चलती रही, फिर अपने आस-पास नज़र आने वाले प्रत्येक शख़्स से प्रेम से बात करना आरम्भ किया। ऐसा करने से हमें हर तरफ़ प्रेम ही नज़र आने लगा, हम घण्टों अकेले अपने आप म...

जलाता आज ये सावन 【66】

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कहाँ हो मीत आ जाओ बुलाता आज ये सावन छुपे हो किस जहाँ में तुम चिढ़ाता आज ये सावन घटाओं से कहा हमने पवन को भी पठाया है फ़िज़ा को बैठ झूले में झुलाता आज ये सावन बरसती बूँद बदरी की बजाती साज सरगम के  सुनाती है मधुर मुरली लुभाता आज ये सावन नज़ारे देख उल्फ़त के नज़र ढूढे सदा तुझको लिखा गीतों में हाल-ए-दिल वो गाता आज ये सावन  कड़कती दामिनी आकर अकेले में डराती है   ‎लगालो कण्ठ से 'माही' जलाता आज ये सावन © डॉ० प्रतिभा 'माही'

तू वही, तू वही, तू वही, तू वही【65】

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तू वही, तू वही, तू वही, तू वही ज़िन्दगी जिसकी चाहत में मेरी गयी तू वही, तू वही, तू वही, तू वही तू ही दाता तू ही रब है तू ही ख़ुदा मेरी रग रग में बस नाम तेरा छुपा तू इबादत मुहब्बत तू ही बंदगी ज़िन्दगी जिसकी चाहत में मेरी गयी तू वही, तू वही, तू वही, तू वही देख तूने रचाया है सारा जहाँ खेल हमको खिलाया गज़ब का यहाँ तेरी यादों में अश्कों की गंगा बही ज़िन्दगी जिसकी चाहत में मेरी गयी तू वही, तू वही, तू वही, तू वही इश्क़ तूने किया मै तो तू हो गयी मै तो मै ना रही तुझमें गुम हो गयी गीत ग़ज़लें कहें, 'माही' दीवानगी ज़िन्दगी जिसकी चाहत में मेरी गयी तू वही, तू वही, तू वही, तू वही © डॉ० प्रतिभा 'माही'

मत पूछो....कि मैं कौन हूँ..? 【64】

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                            मैं एक औरत हूँ मत पूछो.... कि मैं कौन हूँ..? और क्या-क्या कर दिखलाती हूँ...! मैं एक औरत हूँ ..... औरत की बात बताती हूँ...! मैं... माँ हूँ....! माँ की गोद का... एक सकून भरा एहसास हूँ...! आँचल हूँ, ममता हूँ, दुलार हूँ.... माँ की अंखियों से बहती... अमृत की रस धार हूँ..! जो थपकी दे... रूह को गुदगुदाती ...! मैं वो दुआ हूँ... जो नामुमकिन को मुमकिन बनाती हूँ...! मत पूछो.... कि मैं कौन हूँ..? और क्या-क्या कर दिखलाती हूँ...! मैं एक औरत हूँ ..... औरत की बात बताती हूँ...! मैं इतराती.... इठलाती कमसिन कली हूँ....! अपने महबूब की.... महबूबा हूँ...! जो नज़र से नज़र मिला... चुरा लेती दिल...! मुरली की धुन की तरह... धड़कन के तारों को छेड़ती... गुनगुनाती... बेहिचक उतर जाती अन्तस में  ...! मैं वो शमां हूँ..... जो परवानों को लुभाती  हूँ...! मत पूछो.... कि मैं कौन हूँ..? और क्या-क्या कर दिखलाती हूँ...! मैं एक औरत हूँ ..... औरत की बात बताती हूँ...! मैं...... इ...

कश्मीरी फ़ाइल का सबसे दर्दनाक दृश्य-- चन्द दोहों में

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मैंने अपने पूरे परिवार के साथ ये फ़िल्म "The Kashmir Files" 22/03/2022 को देखने गयी । देखने के बाद रात को नींद नहीं आई। फ़िल्म के दृश्य ही आँखों के समक्ष घूम रहे थे। वो दृश्य चन्द दोहों के रूप में कागज पर विखर कर रो पड़े.......! दोहे:--- दृश्य देखकर फ़िल्म का, समझो उनकी पीर। आतंकी के दौर में, कैसा था कश्मीर।। कश्मीरी पंडित सभी, निकाल दिए तत्काल। बचते-बचते जो बचे, गये काल के गाल ।। सम्मुख रखकर लाल के, माँ को किया हलाल। टुकड़े-टुकड़े कर दिया, ले आरे पर डाल।। बन्दूकों की नौंक पर, थे माँ के सब लाल। बेबस सब तकते रहे, डर से हो बेहाल।। कब्र खोद कश्मीर में, दफ़न किये परिवार। इक कतार में कर खड़ा, दिया सभी को मार।। © डॉ० प्रतिभा 'माही'  24/04/2022

न जाने कहाँ मैं किधर खो गयी 【 62 】

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                                   रुबाई                   कि यादों में तेरी मैं गुम हो गयी।                   न जाने कहाँ मैं किधर खो गयी।।                   भला कौन सा लोक है ये प्रिये।                    जहाँ चैन की नींद मैं सो गयी।।                                    ग़ज़ल                    तुझे आज पा ख़ुद को मैं खो रही हूँ।।                    अजी प्रीत के बीज मैं बो रही हूँ।।                    मिटा खौफ़ सारा कि दिल को सकूँ है।        ...

ऋतुराज घर में आया 【61】

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खिलने लगीं ये अखियाँ तन मन पे  नूर छाया। पतझड़ के बाद देखो, ऋतुराज  घर में आया।। घर बन गया है उपवन, है खुशबुओं का डेरा। गाती है गीत धड़कन , दिल झूमे आज मेरा।। खुशियों की आ घटायें कहने लगीं फ़साना। बरसीं सुधा वो बनकर, गा प्यार का तराना।। मोड़ा सभी से मुखड़ा , नाता उसी से जोड़ा। जब हाथ थामा उसने , सारे जहाँ को छोड़ा।। रग रग को चूम उसने पतिया सी मैं तो बाँची। पग बाँध घुँघरू मैं भी फिर झूम कर के नाँची।। कहने लगीं दिशाएँ क्या रूप तूने पाया। पतझड़ के बाद देखो, ऋतुराज  घर में आया।। ऋतुराज ने बजाई, जब प्रेम की मुरलिया। मैं तो हुई दिवानी, फिरती हूँ बन बावरिया।। बरसी है उसकी रहमत, भीगी रहूँ उसी में। अब और कुछ न भाये, डूबी रहूँ उसी में।। सुन लो ऐ दुनियाँ वालो, डोली सजा रही हूँ। दुल्हन मुझे बनाओ ,मैं घर को जा रही हूँ।। करना विदा ख़ुशी से, रोना कभी न प्यारो। 'माही' के संग रहूँगी, तुम सबके दिल में यारो।। खोकर ख़ुदी को मैंने , रब को है आज पाया। पतझड़ के बाद देखो, ऋतुराज  घर में आया।।                     © डॉ० प्रतिभा 'म...

नज़र लग जाये ना【60】

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