जब रूह लगी, थी छटपटाने, तब पड़ी ख़त पर नजर।

जो खत कभी, उसने लिखा था, चीर कर अपना जिगर।

 

याद आतीं हैं बहुत ही प्यार की वो चिठ्ठियाँ।

लाएगा कब डाकिया अब प्यार की वो चिठ्ठियाँ।

डाकिया आता नज़र जब पास जाते दौड़ कर।

हाथ में ले खोजते हैं, प्यार की वो चिठ्ठियाँ।

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