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जां निकलने से से पहले चले आओ तुम

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भीड़ में भी रहे हम अकेले   बहुत ...!! रंग कुदरत के हमने भी देखे बहुत ...! डूब कर इश्क़ में हमने पाया जिसे ..! उसके दुनिया में लगते हैं मेले बहुत ...!!     जब जनाज़ा मेरा वो उठाने लगे। तार धड़कन के यूं गुनगुनाने लगे।। थोड़ा ठहरो अभी उनको आने तो दो। वो तो माही को अपने बुलाने लगे।।     * ग़ज़ल *   जां   निकलने से से पहले   चले आओ तुम।। जिस्म जलने से पहले   चले आओ तुम।।   वक्त कटता नही डसती तन्हाई है। मन मचलने से पहले   चले आओ तुम।।   अश्क़ झरते   नहीं देह पथरा गई। तन बदलने से पहले   चले आओ तुम।।   मर न जाएं कहीं आरज़ू ले तेरी। रूह के चलने से पहले   चले आओ तुम।।   माना मजबूर हो , ' माही ' तुम दूर   हो। वक़्त ढलने से पहले   चले आओ तुम।।   © Dr Pratibha 'Mahi' Panchkula {10/4/2024}

बोलो क्या सुनना चाहते हो तुम...? जो तुम कहदो वही सुनाऊं...!!! 21/03/2025

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प्रेम सु नाऊं , हास्य सु नाऊं ,                     वीरों की ललकार सुनाऊँ ..! दिल  में  प लता प्यार सु नाऊं ,                    या सजता श्रृंगार  सुनाऊँ ...!! कुदरत का हर रंग है यारो ,                       हर र स की मधुशाला है..! भारत  माँ के वाशिंदों की,                     यार कहो चीत्कार  सुनाऊँ ...!! जो तुम कहदो वही   सुनाऊँ ...!!! जो तुम कहदो वही   सुनाऊँ ...!!! रूह से रूह का मिलन करा कर ...! रूहानी मंज़र  दिखलाऊँ   ...! जो तुम कहदो वही   सुनाऊँ ...!! गीत-ग़ज़ल मुक्तक सब कु छ है...! कौन - कौन से रँग दिखलाऊँ ..! जो तुम कहदो वही  सुनाऊँ ....!! मेरी र ब की पक्की यारी ..! मिलना हो तो मैं मिलवा ऊँ ...! जो तुम कहदो वही   सुनाऊँ ...!!   मैं गीत हूँ संगीत हूँ हर द...

पुण्यश्लोक मातोश्रीअहिल्या बाईं होल्कर

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पुण्यश्लोक   मातोश्री  अ हिल्या बाईं होल्कर       व र्ष तीन सौ पूर्व सु न , उ तरी आ त्मा ए क।       त न से तो थी साध्वी, मन से थी वो नेक  ।।                                 गीत सु नो सु नाऊँ किस्सा तुमको, ऐसी  इक म र्दानी का।। गाड़ दिया  था झंडा जिसने, अपनी शौर्य कहा नी  का। पुण्यश्लोक  अहिल्या बाईं शिव की भक्त दिवानी का। गाड़ दिया  था झंडा जिसने, अपनी शौर्य कहा नी  का। सु नो  सु नाऊँ,   सु नो  सु नाऊँ   ...!! सु नो  सु नाऊँ,   सु नो  सु नाऊँ   ...!! करने को उद्धार देश का , धरती   पर   प्रकटी   बच्ची। झूठ कपट सब दूर थे उससे , मन से थी बिल्कुल सच्ची ।।   जीव जंतु या पशु पक्षी हों, सबसे लाड़ लड़ाती थी। बहना थी दो  भाई की वो,  उनसे होड़ ल गाती थी।।   मात  पि ता की गुड़िय...

खट्टा-मीठा इश्क़...! [ COMING SOON MY NEW BOOK ] प्यार भरी नज़्में (मुक्त छंद काव्य)

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                  मेरा इश्क़, ही इबादत ये शब्द डूबे, इश्क़ में,   तेरा नाम, लिख रहे हैं। हाँ आरजू में, बस तेरी ये, पैगाम , लिख रहे हैं ।। है इश्क़ फ़ितरत, में मेरी, मेरा इश्क़, ही इबादत । बस ज़िंदगी के, फ़लसफों का, अंजाम, लिख रहे हैं।।                      खट्टा-मीठा इश्क़...! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! चला आता है... मेरे ख्वाबों की गली... चुरा ले जाता है....  बिन छुए ही....  अपने आप से मुझे.... कर जाता है तन्हा... दुनिया की भरी भीड़ में...! रह जाती हूँ अकेली होकर विदेह तेरी याद में...! और क्या बताऊँ....!!! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! सुन यार... चाहे भोर का उजाला हो... या काली, अंधेरी रात का सन्नाटा...! शाम का सुनहरा आलम हो.... या चाँद की...

गजल : चुन चुन शूल पिरोता क्यूँ है

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यहाँ कर्मों की खेती है,                  जहर के बीज बोना मत। मिलेगा वो जो बोया है ,                   उसे पाकर  तू रोना मत ।। चुन-चुन शूल पिरोता क्यूँ है  माथ पकड़ फिर रोता  क्यूँ  है                      व्यसनों में रहता है डूबा                      जीवन अपना खोता  क्यूँ   है अमृत बेला जाए बीती बेच के घोड़े सोता  क्यूँ  है                       झूम रहा है अपने मद में                       बोझा इतना ढोता  क्यूँ  है पूछ रहा है 'माही' तुझसे बीज जहर के बोता  क्यूँ  है © Dr Pratibha 'Mahi' 

पंचकूला की धरती से..!!!

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अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना,                      सुन लो बहुत जरूरी है। हर दिल से हुंकार निकलना,                      सुन लो बहुत जरूरी है।। चील व कऊए गिद्ध भेड़िए,                       देखो बैठे ताक रहे हैं। रणभूमि में बिगुल का बजना,                      सुन लो बहुत जरूरी है।।                                  गीत  पाँच  कुला की धरती से में, शीश नवाने आई हूँ । धर्म यज्ञ की आहुति का बिगुल बजाने आई हूँ ।। देश की खातिर खून न उबले , खून नहीं वो पानी हैं । रण चंडी का रूप धरे वो, नारी हिन्दुस्तानी है। बात यही बस तुम लोगों को , आज बताने आई हूँ।। पाँच  कुला की धरती से में, शीश नवाने आई हूँ । धर्म यज्ञ की आहुति का बिगुल बजाने आई हूँ ।। चण्डी दुर्गा काल...

अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है ।

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अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना,  सुन लो बहुत जरूरी है । हर दिल से हुंकार निकलना,  सुन लो बहुत जरूरी है ।। कट्टरपंथी हिंदू बनकर,  अपना धर्म बचाओ तुम। हर बाजी पर उत्तर रखना,  सुन लो बहुत जरूरी है ।। पहनके भगवा  निकल पड़ो तुम,  अलख जगाओ घर घर में।  देश की खातिर रक्त उबलना,  सुन लो बहुत जरूरी है ।। चील व कऊए गिद्ध भेड़िए,  देखो बैठे ताक रहे। रण भूमि में बिगुल का बजना,  सुन लो बहुत जरूरी है ।। चुन चुन कर अब दफन करो,  जो सौदा करते अपनों का। उन वहशी को आज पकड़ना,  सुन लो बहुत जरूरी है ।। आगे आकर कदम बढ़ाओ,  शस्त्र उठाओ हाथों में । हर बेटी का दुर्गा बनना ,  सुन लो बहुत जरूरी है।।