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Showing posts from 2021

इश्क़-ए माही 【59】

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इश्क़-ए-माही  पुस्तक खरीदने व पढ़ने के लिए आप amazon पर नीचे दिए लिंक के माध्यम से जा सकते हैं। https://www.facebook.com/pratibhagupta.mahi/videos/592376635232491/?fs=e&s=cl ★'इश्क़-ए-माही '(ग़ज़ल संग्रह) साहित्यकार © डॉ० प्रतिभा 'माही'' https://www.amazon.in/dp/B08B69XP2W/ref=cm_sw_r_cp_apa_glt_fabc_Q47YHC2JKQM4YR2YX5JX

इबारत...ISHQ HUN....【58】

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                                  इबारत                                 इश्क़ हूँ .....                               इबादत हूँ .....                              मोहब्ब्त हूँ .....                   रहमत हूँ ख़ुदा की, क़यामत हूँ ....!                              दिल्लगी हूँ ....                              आरज़ू हूँ .....                             नज़ाकत हूँ ......            ...

ना तेरा है ना मेरा है...【57】

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माँ का कर्ज़ 【55】

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    वक़्त     मुलाकात     बन्दिशें     चकोरी     ग़म का समन्दर       माँ का कर्ज़

समीक्षा: पुस्तक 'इश्क़ इबादत' की डॉ० मनोज भारत द्वारा 【54】

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समीक्षा:     डॉ मनोज भारत (कवि एवं समालोचक) द्वारा। पुस्तक:      'इश्क़ इबादत' (काव्य संग्रह )। रचनाकार:   डॉ० प्रतिभा 'माही' पंचकूला।             डॉ० प्रतिभा माही एक सार्थक और सक्रिय सृजनधर्मी हैं। विभिन्न साहित्यिक विधाओं में उनके कई संकलन प्रकाशित हो चुके हैं तथा कई संकलन प्रकाशनाधीन हैं। उनका पहला ग़ज़ल संग्रह ' इश्क़ मेरा सूफ़ियाना'  साहित्य जगत की सुर्ख़ियों में रह चुका है। उनकी ग़ज़लों का जादू पाठकों के सर चढ़ कर बोला है। जब वे ' चंदामामा आओ ना' जैसा बाल साहित्य लिखती हैं, तो बच्चों की मनोदैहिक समस्त आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए बाल-मनोविज्ञान की समस्त धारणाओं की अनुपालना करती हैं। जब वे सूफ़ियाना रूहानियत में विचरण करते हुए 'इश्क़ मेरा सूफ़ियाना ' लिखती हैं तो उनका अंदाज़ एक गूढ़ दार्शनिक जैसा हो जाता है।                      डॉ० प्रतिभा 'माही' प्रकाशन के साथ-साथ मंचीय आयोजनों में भी सक्रिय सहभागिता करती रही हैं। वे  एक सफल कवयित्री, ग़ज़लगो, स...

जब से खुदको पढ़ना सीखा 【53】

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ग़ज़ल जब से खुदको पढ़ना सीखा । बस खुद मैं ही ढलना सीखा।। रुह से रुह का कैसा पर्दा । रुह ने रुह में बसना सीखा।। क्या खुशियाँ क्या ग़म का मंज़र। हर लम्हें में हँसना सीखा।। अपनों की ख़ातिर बस पल पल। शम्मा सा बस जलना सीखा।। सात स्वरूपों को संग लेकर। अक्स तेरा बन चलना सीखा ।। © #Dr.Pratibha_Mahi

अस्तित्व- नज़र- पहलू- हमसाया- अजनबी【56】

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कुछ सूफ़ी कषेणिकाएं *पहलू*  जी चाहता है.... तेरे पहलू में ख़ुद को... छुपा लूँ.....! और...  फ़ना हो जाऊँ सदा के लिए..!  *नज़र* आ उढ़ादे .... अपनी रहमत की चादर....! लगादे काला टीका..! ताकि... नज़र ना लगे ज़माने की....!  *हमसाया*  आ कह दे... इस आदमखोर ज़माने से....! अकेली नहीं है 'माही'....! मेरा हमसाया.... सदा रहता है उसके साथ....!  *अजनबी*  तू और मैं.... अब अजनबी कहाँ..... मैं दूध तो तू पानी है...! अगर मिल जायें .... तो अलग करना मुमकिन नही....!  *अस्तित्व*  मैं तू... और तू मैं है... तू नहीं तो मैं नहीं...!! और.... मैं नहीं... तो तेरा कोई अस्तित्व नही....! ©डॉ०प्रतिभा माही(10/08/2018)

दिल तो बच्चा है【52】

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क्या आप सभी को अपना बचपन याद आता है...? दोस्तों ..!           क्या आप सभी को अपना बचपन याद आता है, ज़रूर आता होगा,  क्योंकि मुझे भी अपना बचपन बहुत याद आता है । मेरा दिल करता है  कि मैं उन्हीं दिनों में वापस लौट जाऊँ , पर ऐसा मुमकिन नहीं है ।              आपका दिल भी करता होगा कि आप  भी उन्हीं बचपन के दिनों में वापस लौट जायें , पर ऐसा नहीं हो सकता , हम बस उन दिनों को याद कर सकते हैं । उन्हीं दिन की यादों को सँजोते हुए , मैंने कुछ पंक्तियां कविता व ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत की है .....! मनचले   ******* आ चल ....! ले चलूँ तुझे... बचपन के उस दौर में ...! जब हम ... कुछ नटखट... कुछ भोले और मासूम... कुछ तेज तर्रार... तितली और भँवरे से उड़ा करते..! लड़ते झगड़ते.. रूठ जाते.. एक दूसरे से... बात बात पर कट्टी करते.... और... अगले ही पल पुच्चा कर लेते..! बन्दरों की भाँति... उछलते कूदते.... एक दूसरे की नकल कर... आपस मे चिढ़ाते... नाचते गाते... गले लगा लेते... न किसी का भय.... न किसी की फिकर.... हम सब ऐसे ही... मनचले थे ......

"कवियों का दिल अदब की महफ़िल" (खुशियों के पल) 【01】अखिल भारतीय कविसम्मेलन व मुशायरे (03/07/2021)

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एम० के० साहित्य अकादमी (रजि०) पंचकूला द्वारा दिनांक 03/07/2021 को शाम 6 बजे "कवियों का दिल अदब की महफ़िल" ऑनलाइन वेबिनार 【01】(खुशियों के पल) अखिल भारतीय कविसम्मेलन व मुशायरे का आयोजन  किया गया। जिसमें विभिन्न राज्यों व प्रान्तों से उपस्थित सभी प्रख्यात कलमकारों को Movement Of Happiness Award 2021 से नवाज़ा गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री गणेश दत्त जी (पंचकूला) द्वारा की गई। डॉ० प्रतिभा 'माही' जी ने कार्यक्रम का संचालन किया।  डॉ० प्रतिभा 'माही' जी ने प्रेम-श्रृंगार से ओतप्रोत ग़ज़ल सुनाई........ दिया एक जलाया सवेरे-सवेरे कोई पास आया सवेरे-सवेरे  सजा सेज कलियाँ लगीं गुदगुदाने हिया से लगाया सवेरे-सवेरे बतायें क्या तुमको कयामत क्या आयी लबों पर सजाया सवेरे-सवेरे नजर से नजर जब मिलाई थी उसने  नशा सा पिलाया सवेरे-सवेरे चुराकर जिया जब वो जाने लगा था  घटा बनके छाया सवेरे-सवेरे  मैं मदहोश होकर लगी झूमने जब आ खुद में समाया सवेरे-सवेरे न जाने क्यूँ माही चढ़ी ये ख़ुमारी  कदम डगमगाया सवेरे-सवेरे •••••••••••••••••••••• ©® डॉ प्रतिभा 'माही' •...

सरहद पर जाने की तैयारी .. 【51】

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  वीर सिपाही जब सरहद पर युद्ध मे जाने के लिए तैयार होता है तो अपने परिवार से कैसे विदा लेता है और क्या कहता है?  1)- पत्नी से विदाई लेता है और उसे गले लगाकर क्या कहता है देखिए:... आपका भी दिल भर आएगा....  चला हुन आज सरहद पर, कफ़न सिर पर सजाकर मैं  तेरे गजरे की ख़ुशबू को, चला मन में छुपाकर में  चुरा बहना की चंचलता , मुहब्बत थाम अपनों की  अजी नन्हीं सी चिड़िया को, चला दिल मे बसाकर मैं 2)-बहन से गले लिपट जाती है और कहती है भाई आज तू मेरा भी प्रण सुनले---- सजाकर शस्त्र काँधे पर, चलूँगी साथ मैं  वीरा समझले आज सीमा पर, लड़ूँगी साथ मैं  वीरा उठा आक्रोश है दिल में, रगों में रक्त फौजी है कदम पद चिन्ह पर तेरे, धरूँगी साथ मैं वीरा विश्वास दिलाने को फिर कहती है.... उठाकर रुख से हर पर्दा, नज़ारे सब दिखा दूँगी समझना मत मुझे अबला, कयामत मैं बुला दूँगी भले कमज़ोर हूँ तन से, मगर फौलाद सी हूँ मैं दरिन्दों की हुकूमत को, मैं माटी में मिला दूँगी 3) भाई अपनी जिद्दी बहन को समझाता है क्या कहता है देखें......! समझता हूँ तेरी हालत,...