जब से खुदको पढ़ना सीखा 【53】
ग़ज़ल
जब से खुदको पढ़ना सीखा ।
बस खुद मैं ही ढलना सीखा।।
रुह से रुह का कैसा पर्दा ।
रुह ने रुह में बसना सीखा।।
क्या खुशियाँ क्या ग़म का मंज़र।
हर लम्हें में हँसना सीखा।।
अपनों की ख़ातिर बस पल पल।
शम्मा सा बस जलना सीखा।।
सात स्वरूपों को संग लेकर।
अक्स तेरा बन चलना सीखा ।।
© #Dr.Pratibha_Mahi
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