अस्तित्व- नज़र- पहलू- हमसाया- अजनबी【56】

कुछ सूफ़ी कषेणिकाएं
*पहलू* 
जी चाहता है....
तेरे पहलू में ख़ुद को...
छुपा लूँ.....!
और...
 फ़ना हो जाऊँ सदा के लिए..!

 *नज़र*
आ उढ़ादे ....
अपनी रहमत की चादर....!
लगादे काला टीका..!
ताकि...
नज़र ना लगे ज़माने की....!
 *हमसाया* 
आ कह दे...
इस आदमखोर ज़माने से....!
अकेली नहीं है 'माही'....!
मेरा हमसाया....
सदा रहता है उसके साथ....!

 *अजनबी* 
तू और मैं....
अब अजनबी कहाँ.....
मैं दूध तो तू पानी है...!
अगर मिल जायें ....
तो अलग करना मुमकिन नही....!
 *अस्तित्व* 
मैं तू...
और तू मैं है...
तू नहीं तो मैं नहीं...!!
और....
मैं नहीं...
तो तेरा कोई अस्तित्व नही....!
©डॉ०प्रतिभा माही(10/08/2018)

Comments

Popular posts from this blog

भगवा है पहचान हमारी (70) हिन्दुत्व राष्ट्र

मेरा प्यार (90)

खट्टा-मीठा इश्क़...! [ COMING SOON MY NEW BOOK ] प्यार भरी नज़्में (मुक्त छंद काव्य)