मिलन की आस ...! (82)
मुक्तक
प्यार की ख़ातिर
चले आओ जहाँ भी हो, हमारे प्यार की ख़ातिर।
तड़पती रूह रह-रह कर, तुम्हारे प्यार की ख़ातिर।।
तुम्हें भेजा है उस रब ने, तकाज़ा वक़्त का समझों।
लिए बैठे हैं हाथों में नज़ारे प्यार की ख़ातिर।।
बरसता नूर चहरे पर, चुभन इक खास लाईं हैं
तेरे अहसास की बूँदें, नया अहसास लाई हैं।
मुहब्बत को लिए दिल में, चले आये तेरे दर पर।
ज़रा देखो भरी महफ़िल , मिलन की आस लाईं हैं।।
बोलतीं आँखें
मुहब्बत हो या रुसवाई, सभी रँग घोलतीं आँखें।
नज़ारों को नज़र में भर, नशे से डोलतीं आँखें।।
बड़ी चंचल सयानी हैं , बना लेतीं हैं दीवाना।
छुपालो लाख हाल -ए -दिल,अजी सब बोलतीं आँखें।।
तुझे तुझसे चुराने को
खड़ी हूं तेरे सम्मुख मैं, तुझे तुझसे चुराने को।।
चली आई हूं महफिल में, तुझे अपना बनाने को।
जिगर को थाम कर बैठो, संभल जाओ मेरे दिलवर।
बिछी कदमों तले तेरे, सुमन बन कर लुभाने को।।
फिर शुरू होगी
मिलेंगे जब कभी हम तुम , रवानी फिर शुरू होगी।
सुनो माही मुहब्बत की, कहानी फिर शुरू होगी।।
उडूँ आज़ाद पंछी सी, मगन हो चूमती अम्बर।
गुज़रते पहर में यारा, जवानी फिर शुरू होगी।।
मुझे अपना बनाओ ना
भला नाराज़ क्यूँ हो तुम, ख़ता मेरी बताओ ना।
पकड़ लो हाथ आकर के, मुझे अपना बनाओ ना।।
बसे धड़कन के हर स्वर में, गज़ब सरगम बजाते हो।
बना मुरली उठा मुझको, लवों पर अब सजाओ ना।।
पत्थरों के शहर में
क्या बताएं क्या घटे इन पत्थरों के शहर में।
रो रही माँ भारती अब पत्थरों के शहर में।।
मर गयी इन्सानित औ ज़ुर्म मुहुँ फाड़े खड़ा।
हो गया इंसान भी पत्थर पत्थरों के शहर में।।
ज़हर के बीज बोना मत
यहाँ कर्मों की खेती है, ज़हर के बीज बोना मत।
बता देना सभी रब को, कभी कुछ भी लुकोना मत।।
निगाहें हैं सदा पैनी तेरे कदमों पे सुन उसकी।
मिलेगा वो जो बोया है , उसे पाकर तू रोना मत ।।
अगर तुम सा सखा होता
मेरे माही मेरे सतगुरु, अगर तुम सा सखा होता ।
न ठोकर आज खाते हम, खुदा भी मिल गया होता ।।
पकड़ लेता मेरी उँगली, गरत में जा नहीं गिरते।
सँभल जाते ज़माने से, अगर पहले मिला होता।।
चढ़े अदभुत ख़ुमारी है
मुझे कहते सभी उर्दू सखी हिन्दी हमारी है।
हूँ दुनियाँ की मैं शहजादी ज़माने को वो प्यारी है।।
मुहब्बत की सदा बातें , ग़ज़ल गीतों में करते हम
चले जादू हमारा जब चढ़े अदभुत ख़ुमारी है।।
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