स्वर्णिम भारत के निर्माण में योगदान (81)
वो कली हूं....
जो कभी मुरझाती नहीं...!
सिर्फ बाबा के अलावा....
कहीं और सर झुकाती नहीं...!
भिड़ जाती हूं...
दुनिया के खरपतवारों से....!
बेवजह....
किसी को सर पर बिठाती नहीं...!!
जिसे कोई न पढ़ पाया, मैं ऐसी इक कहानी हूं।
मुहब्बत है, मुझे खुद से, मैं खुद की ही दिवानी हूं।।
स्वर्णिम भारत के निर्माण में ,
मैं अपनी आहुति देते हुए मैं कहना चाहती हूं
बज़्म में आए हो प्यार कर लो ज़रा।
थाम कर हाथ में हाथ नच लो ज़रा।।
कल इजाजत समय की मिले ना मिले।
ठोक कर तालिया आज हँस लो ज़रा ।।
परिवर्तन की आई बेला बच्चों पास बुला लो तुम
आया हूं मैं आज धरा पर थोड़ा समय निकालो तुम
आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा..!
स्वर्ग के सुंदर महलों का ये राजा हमें बनाएगा..!
स्वर्ग नरक है इसी धरा पर, परमपिता ये कहते हैं..!
पहले भी स्वर्णिम था भारत, फिर स्वर्णिम बन जाएगा..!
प्रेम समर्पण दया वी करुणा सुन बरसाने आए हैं।
परम धाम से बाबा मेरे पाठ पढ़ाने आए हैं
बाबा मुझसे कहते हैं
मैं थोड़ा मुस्कुरा दूं थोड़ा तू मुस्कुरा दे
इक बूंद में पिला दूं इक बूंद तू पिला दे
मिट जाएगा अंधेरा, रोशन रहेगा हर दिल
इक दीप में जला दूं इक दीप तू जला दे
छोड़ दिया सब तेरे हवाले, मेरा क्या..?
पार लगा या नाव डुबादे, मेरा क्या..?
धरती अम्बर धन दौलत सब, तेरा है..!
जो तू चाहे दाव लगाले, मेरा क्या...??
बाबा मुझे तेरा दर मिल गया
जीने का मुझको हुनर मिल गया
कब से भटकती रही दरबदर
बेघर मेरे दिल को घर मिल गया
और जब से बाबा का घर मिला तब से...
न जाने ये कैसी बेकरारी है...
कि हर नज़र में तू ही दिखाई देता है...!
बिखरते हैं लफ्ज़ जब होठों से ...
सिर्फ तेरा नाम ही सुनाई देता है...!!
अजी अब आ गया हमको, हुनर ख़ुद को सजाने का।
ग़मों का जाम पीकर भी, सदा ही मुस्कुराने का।।
जलाकर ज्ञान की ज्योति, मुहब्बत बाँटते फिरते।
बताया रास्ता रब ने, हमें ख़ुद से मिलाने का।।
खबर ज़माने की ना कोई न खुद की अब चिंता है
इश्क हुआ है तुझसे यारा बस तू ही तू दिखता है
तू वही, तू वही, तू वही, तू वही
ज़िन्दगी जिसकी चाहत में मेरी गयी
तू वही, तू वही, तू वही, तू वही
तू ही दाता तू ही रब है तू ही ख़ुदा
मेरी रग रग में बस नाम तेरा छुपा
तू इबादत मुहब्बत तू ही बंदगी
ज़िन्दगी जिसकी चाहत में मेरी गयी
तू वही, तू वही, तू वही, तू वही
परमपिता जिसको कहे, शिव है उनका नाम।
सिफर रूप में जो सदा, रोशन करते धाम।।
हम सभी रूहें अविनाशी हैं...!
आ पवन बलाएँ लेती है,
खग-मृग सब करते हैं नरतन...!
मुस्कान लबों पर नाच उठी
टूटा हर इक अपना बन्धन...!
हम लींन हुए शिव बाबा में,
अब बरस रहा हरसूं कुमकुम...!
हम गुथे हुए हैं, चोटी से,
और हुए सिफ़र में जाकर गुम---!
ज्योति जले जिस पर बाबा की..
हम प्रेम भरी वो बाती हैं..!
है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव ,
हम उसी लोक के वासी हैं ….।
हम सभी रूहें अविनाशी हैं...!
क्या बताएं क्या घटे इन पत्थरों के शहर में
रो रही माँ भारती अब पत्थरों के शहर में
मर गयी इन्सानित औ ज़ुर्म मुहुँ फाड़े खड़ा
हो गया इंसान भी पत्थर पत्थरों के शहर में
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