अमर कहानी ( 85)

*अमर कहानी* 
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आजा़दी की अमर कहानी, 
तुमको आज सुनाते हैं।
इतिहास पुरुष नेता सुभाष से, 
तुमको हम मिलवाते हैं।।

रक्त कणों से लिखी दास्तां, 
अदभुत अज़ब निशानी है।
मां की खातिर लहू न उबले,
खून नहीं वो पानी है।।

नेता सुभाष ने एक सभा में, 
मांगी जब कुर्बानी थी ।
वर्मा के उन लोगों ने तब, 
खून की कीमत जानी थी।।

बोले, आजादी पाने को, 
बलि बेदी पर चढ़ना होगा ।
तुम खूब नजारे देख चुके, 
अब तो आगे बढ़ना होगा।।

बेड़ी मां की कटवाने को, 
बढ़ चढ़कर होड़ लगा लेना।
मां से मिलने का वक्त मिले, 
चरणों में शीश चढ़ा देना।।
 
आज़ादी की सुनो लड़ाई, 
क्या डर कर  जीती जाती है।
बेखौफ़ खुशी से हंसते-हंसते, 
सिर नंगे बलि दी जाती है।।

स्वतंत्रता की देवी को, 
जो जयमाला पहनानी है।
सुनो साथियों शीश फूल से, 
वो माल तुम्हें गुंथवानी है।।

नेताजी के नैनों में तब, 
यारो खून उभर आया।
दमक उठा मुखड़ा सूरज सा,  
चमक उठी कंचन काया।।

हाथ उठा बोले नेताजी, 
तुम अपना खून मुझे  देना।
इसके बदले में तुम मुझसे , 
मां की आजादी ले लेना।।

जिसमें हो दम मर मिटने का, 
वह अपना नाम लिखादे अब।
आन करे हस्ताक्षर अपने, 
कागज़ पर खून गिरादें अब।।

हुंकार उठी सबके दिल से, 
बोले हम खून तुम्हें देंगे।
उंगली काट रक्त से अपने, 
इन्कलाब हम लिख देंगे।।

देखा था चांद सितारों ने, 
उनमें उपजा विश्वास नया।
उन रणवीरों ने रच डाला ,
अपने खूँ से इतिहास नया ।।

साहस से बढ़ वीर बहादुर, 
सुनो सामने आते थे।
आजादी के परवाने पर, 
हस्ताक्षर कर  जाते थे।।

© डॉ० प्रतिभा 'माही'
 (मो०न० 8800117246)
#1361 - F, Sector - 11, Panchkula

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