ऐसे मेरे रघुवर रामा...! (87)
दोहा
(01)
वास करें दिल मे सदा, मेरे प्रियवर राम।
राम-राम रटते रहो, पाओगे आराम।।माही।।
(02)
करें पाप का अंत जहां में, पापी का उद्धार करें ।
श्रद्धा भक्ति भाव समर्पण, देख सदा उपकार करें।।
गीत
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ऐसे हैं श्री राम ..।4
मेरे ऐसे हैं श्री राम...!2
ऊँच नीच का भेद मिटाकर ,
सबको गले लगाते हैं।
पितु के आज्ञाकारी पुत्तर ,
पितु का वचन निभाते हैं।
छोड़ छाड़ कर राज-पाट सब,
वन में जा बस जाते हैं।
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम...!
विश्वामित्र के ख़ातिर रघुवर,
राक्षस से भिड़ जाते हैं।
यज्ञ में विध्न न आये कोई,
सेवा में जुट जाते हैं।
पूरा यज्ञ कराकर गुरु का,
अपना फर्ज निभाते हैं
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम...!
गौतम ऋषि ने मात अहिल्या,
को जब ठोकर मारी।
मात अहिल्या बनी शिला तब
थी उनकी लाचारी ।।
शिला अहिल्या को पद रज से,
श्राप मुक्त कर जाते हैं।
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम...!
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मुक्तक
जिन्हें तुम याद करते हो, वो मेरे पास रहते है...
मेरी बातें भी सुनते हैं , और अपनी बात कहते हैं.....
अजी मैं मस्त मौला हूं, प्रभु के संग रहती हूं
करू दिन रात सेवा मैं, उसी की बात कहती हूं।
(रघुवर रामा अट्ठावानी ) 58 पंक्तियां
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लिखी अट्ठावानी रघुवर रामा
जानो कैसे रघुवर रामा
मन में रामा तन में रामा
मेरी तो रग-रग में रामा
तुझमें रामा मुझमें रामा
जग के तो कण-कण में रामा
कृपा अपनी करते आना
हर क्षण हर पल धरते ध्याना
करते सबरे पूरण कामा
ऐसे मेरे रघुवर रामा...!
मन में रामा तन में रामा.....!
मेरी तो रग-रग में रामा...!!
खुशियों से आ दामन भर कर
झूम उठे आ ललना बनकर
पैरों में पैजनियाँ बाजी
गल मुतियन की माला साजी
घौटुन-घौटुन अंगना डोलें
मीठी मधुर बोलियाँ बोलें
ठुमुक-ठुमुक कर चलते फिरते
आँखे मलते मीं-मीं करते
बन जाते बालक श्रीरामा
ऐसे मेरे रघुवर रामा....!
मन में रामा तन में रामा.....!
मेरी तो रग-रग में रामा..!!
राम भरत और लखन शत्रुघ्न
चारों हैं दशरथ सुत नन्दन
धनुष वाण काँधे पर साजे
गुरु वशिष्ठ से शिक्षा पाते
शिक्षा पा जब लौटे रामा
आ पहुँचे निज अपने धामा
विश्वामित्र गुरु तब आये
एक लालसा मन में लाये
संग चले रक्षा प्रण थामा
ऐसे मेरे रघुवर रामा....!
मन में रामा तन में रामा.....!
मेरी तो रग-रग में रामा...!!
मात पितू से आज्ञा लीनी
आन प्रतिज्ञा पूरी कीनी
गुरुवर से आ बोले रामा
गुरुवर आप करें विश्रामा
रघुवर ने फिर चरण दबाये
मुनिवर ने कुछ वचन सुनाये
जनक सुता सीता अति प्यारी
ली है एक प्रतिज्ञा भारी
समझ गये सब अंतर्ध्याना
ऐसे मेरे रघुवर रामा....!
मन में राम तन में रामा.....!
मेरी तो रग-रग में रामा..!!
शिव का था बस धनुष उठाना
जनक सुता को वर ले आना
हुआ स्वयंवर सुन अति भारी
जोर लगावें बारी-बारी
लेकिन हिला न तिलभर धन्वा
देख रहा था पूरा कुनवा
धीरज छूट गया जब पितु का
धनु तोड़ा रघुवर ने शिव का
सीता को वर लाए रामा
ऐसे मेरे रघुवर रामा....!
मन में राम तन में रामा.....!
मेरी तो रग-रग में रामा..!!
© Dr. Pratibha 'Mahi'
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