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खट्टा-मीठा इश्क़...! [ COMING SOON MY NEW BOOK ] प्यार भरी नज़्में (मुक्त छंद काव्य)

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                  मेरा इश्क़, ही इबादत ये शब्द डूबे, इश्क़ में,   तेरा नाम, लिख रहे हैं। हाँ आरजू में, बस तेरी ये, पैगाम , लिख रहे हैं ।। है इश्क़ फ़ितरत, में मेरी, मेरा इश्क़, ही इबादत । बस ज़िंदगी के, फ़लसफों का, अंजाम, लिख रहे हैं।।                      खट्टा-मीठा इश्क़...! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! चला आता है... मेरे ख्वाबों की गली... चुरा ले जाता है....  बिन छुए ही....  अपने आप से मुझे.... कर जाता है तन्हा... दुनिया की भरी भीड़ में...! रह जाती हूँ अकेली होकर विदेह तेरी याद में...! और क्या बताऊँ....!!! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! सुन यार... चाहे भोर का उजाला हो... या काली, अंधेरी रात का सन्नाटा...! शाम का सुनहरा आलम हो.... या चाँद की...

जय भारत मां भारती

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घटा सी मस्त मौला हूँ , पवन के साथ बहती हूँ । कलम की इक सिपाही हूँ , वतन के गीत कहती हूँ।। बरसती सिंहनी बनकर, भरूँ हुंकार शब्दों से ।  मैं भारत माँ की हूँ रक्षक, तिरंगा हाथ  गहती हूँ ।। पाँच  कुला की धरती से में, शीश नवाने आई हूँ । धर्म यज्ञ की आहुति का बिगुल बजाने आई हूँ ।। देश की खातिर खून न उबले , खून नहीं वो पानी हैं । बात यही बस तुम लोगों को , आज बताने आई हूँ।। चण्डी दुर्गा काली बनकर , सबको सबक सिखाना है। गद्दारों की गद्दारी को आग लगाने आई हूँ ।। भारत मां की बेटी हूँ, हैं शस्त्रों से श्रृंगार करूं। बरछी ढाल कृपाण कटारी आज चलाने आई हूं।। अर्जुन की 'माही' बनकर मैं गीता पुनः पढ़ा दूंगी। धर्म युद्ध में अधर्मियों के होश उड़ाने आई हूं।। देश की खातिर रक्त उबलना, सुन लो बहुत जरूरी है ।। अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है । कट्टरपंथी हिंदू बनकर अपना धर्म बचाओ अब। हर बाजी पर उत्तर रखना, सुन लो बहुत जरूरी है । निकल पड़ो अब पहन के भगवा , अलख जगाओ घर घर में। हर दिल से हुंकार निकलना, सुन लो बहुत जरूरी है ।।  चील व कऊए गिद्ध भे...

अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है ।

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देश की खातिर रक्त उबलना, सुन लो बहुत जरूरी है ।। अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है । कट्टरपंथी हिंदू बनकर अपना धर्म बचाओ अब। हर बाजी पर उत्तर रखना, सुन लो बहुत जरूरी है । निकल पड़ो अब पहन के भगवा , अलख जगाओ घर घर में। हर दिल से हुंकार निकलना, सुन लो बहुत जरूरी है ।।  चील व कऊए गिद्ध भेड़िए, देखो बैठे ताक रहे। हर बेटी का दुर्गा बनना , सुन लो बहुत जरूरी है।। चुन चुन कर अब दफन करो जो , सौदा करते  अपनों का। उन वहशी को आज पकड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है ।। आगे आकर कदम बढ़ाओ शस्त्र उठाओ हाथों में । रण भूमि में बिगुल का बजना, सुन लो बहुत जरूरी है ।।

मैं गीत हिन्द के गाती हूं...

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हिंद राष्ट्र पर लिखती हूं,  उसके ही गीत सुनाती हूं। हिन्दू है आधार जगत का,  सबको यह बतलाती हूं मैं गीत हिन्द के गाती हूं....!2 हम सबका प्यार सनातन है। जग का आधार सनातन है।। है वेदों का ज्ञान जाहं, भागवत का है गान जाहं, गीता रामायण का होता घर -घर में सम्मान जाहं उस मातृभूमि को नमन मेरा जाहं कण - कण यार सनातन है। हम सबका प्यार सनातन है। जग का आधार सनातन है।। धरती अम्बर और नदियों को, पशु पक्षी जड़ी बूटियों को, पूजा जाता है श्रद्धा से, वो सूरज  चाँद सनातन हैं है भक्ति भाव सबके मन में पूरा संसार सनातन है।। हम सबका प्यार सनातन है। जग का आधार सनातन है।। उठो सनातनी शपथ उठाओ, विश्व विजय परिवर्तन की। घर घर जाकर अलख जगाओ, विश्व विजय परिवर्तन की।। भारत मां की सेवा में जुट, अपना पूर्ण समर्थन दो। गर हिंदू हो विपुल बजाओ, विश्व विजय परिवर्तन की।। ********** करे राज हिंदुत्व हमारा, वक्त बदलना चाहिए। अगर लाल भारत माँ के हो, रक्त उबलना चाहिए।। विजय विश्व की शपत उठाओ, नाज़ करे  भारत भूमि चले विश्व पर सत्ता अपनी, तख्त पलटना चाहिए।। ********** © Dr Pratibha'Mahi' उसको तुमसे कह...

भगवा है पहचान हमारी (70) हिन्दुत्व राष्ट्र

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हिंद राष्ट्र पर लिखती हूं, उसके ही गीत सुनाती हूं। हिन्द है आधार जगत का, सबको यह बतलाती हूं मैं गीत हिन्द के गाती हूं....!2 ****** मेरा मान तिरंगा है.. मेरी शान तिरंगा है... भारत मां की पहचान तिरंगा है....! तिरंगा है है है..तिरंगा है.... तिरंगा है है है.. तिरंगा है...  तिरंगा है.... तिरंगा है.... तिरंगा है.....तिरंगा है...! केसरिया बहता रग - रग में, शक्ति बन भिड़ जाता है। सफेद रंग है सच्चाई का, शांति पाठ पढ़ाता है।। हरा रंग है हरियाली का, खेतों की अंगड़ाई है।  और चक्र जो चलता प्रतिफल, उसमें रहा दिखाई है।।  लहर लहर लहराए घर-घर, गीत सुहाने गाता है। वीर शहीदों की कुर्बानी हर पल याद दिलाता है।। वो आन तिरंगा है.... सम्मान तिरंगा है.... भारत मां की पहचान तिरंगा है....! तिरंगा है है है..तिरंगा है.... तिरंगा है है है.. तिरंगा है...  तिरंगा है.... तिरंगा है.... तिरंगा है.....तिरंगा है ******** वक्त बदलना चाहिए*  करे राज हिंदुत्व हमारा, वक्त बदलना चाहिए। अगर लाल भारत माँ के हो, रक्त उबलना चाहिए।। विजय विश्व की शपत उठाओ, नाज़ करे धरती माता। चले विश्व पर सत्ता अपनी, तख्त पल...

पुलवामा

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शत शत नमन शहीदों को करता भारत शीश झुकाकर , शत शत नमन शहीदों को अश्क़ स्वरूपी सुमन चढ़ाकर, शत शत नमन शहीदों को पुलवामा की इस घटना ने, दिल को चकना चूर किया भारत के हर शख़्स को इसने, उठने को मजबूर किया बच्चे बूढ़े नर नारी सब , उतर पड़े हैं सड़कों पर मोदी जी अब कदम उठाओ , लफ़्ज़ यही हैं होठों पर माता के हृदय से चिपके, देखो लाल सिसकते है बहना के पथराये नैना, वीर का रस्ता तकते हैं वीर शहीदों की रूह पूछे , कुछ तो बोलो मोदी जी उबल रहा है लहू हमारा , मुख तो खोलो मोदी जी आतंकी का खौफ बताओं, कब तक राज करेगा अब घाव लगे हैं जो ह्रदय पर, उनको कौन भरेगा अब बतलाओ क्या उत्तर दे हम, अपने वीर शहीदों को करता भारत शीश झुकाकर, शत शत नमन शहीदों को शस्त्र सजाकर बैठे हैं बस, एक इशारा दे दो तुम आज मिला देंगे माटी में, बैठ नज़ारा देखो तुम अब सहन नहीं होती हमसे, ये पाकिस्तान की गद्दारी पाल रहा जो आतंकी को, करता छुपकर गोलाबारी आदेश तुम्हारा मिल जाये, तो डंका आज बजा देंगे कमजोर न समझें भारत को, ये दुनिया को समझा देंगे शीश हिलाकर मोदी जी ने, सेना को आदेश दिया ब्रह्ममहूर्त में पवनदूत को, बालकोट में भेज दिया बोले ज...

कविता: विभाजन विभीषिका

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मैं वीरों का मान लेती हूं  शहीदों का सम्मान लिखती हूं  लिखती हूं आप सबके दिलों की हुंकार  और देश का उत्थान लिखती हूं दोहा हुआ विभाजन देश का, मच गया हाहाकार। गूंज रही थी हर तरफ़, बस अब चीख पुकार दोहा थी सरहद की सर ज़मी , लतपथ खूं से लाल। लाखों परिजन देश के , गए काल के गाल।। कविता: विभीषिका आज का दिन था विभीषिका का, आज के दिन थे सब लाचार। आज के दिन भागे थे फिरंगी, देश का करके बंटाधार।।   आग लगाई अंग्रेजों ने, अलग अलग फिर छांट दिया। जाते जाते भारत मां को, दो हिस्सों में बांट  दिया।। धर्मों में फूट पड़ी ऐसी, छिड़ गई लड़ाई बढ़ चढ़कर ।। जो आग लगाई गोरो ने , पनपी वो हिंसा बन बनकर। काट रहे थे, इक दूजे को, तब नदी खून की बहती थी। अपने बच्चों की पीड़ा को, तब भारत माता सहती थी।। जो बिछड़ गए थे अपनों से, अपनों को जलते देखा था। लाशों पर लाशें पटती थीं, लाशों को चलते देखा था।। है शब्द नहीं दिल में कोई, उनकी पीड़ा का वर्णन हो। बस दुआ यही करती माही, उन सब रूहों का तर्पण हो।। © डॉ० प्रतिभा माही कातिलों के शहर ढूंढ़ते हो अमन  राह वीरान हैं लुट रहे हैं चमन  कर...