मैं कवि हूँ और हाजिर हूँ ,
मैं कवि हूँ और हाजिर हूँ ,
हंसने हंसाने को और गुदगुदाने को,
थाम कर बैठना बाबा का हाथ,
कहीं माया रुपी रावण,
उठा न ले जाए तुम्हें अपना बनाने को..!
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मैं बाबा की बच्ची बचाने को आई
तुम्हें आज शिव से मिलाने को आई
मैं हंसने को आई हंसाने को आई
तुम्हारी ये महफि़ल, सजाने को आई
मैं तुमको तुम्ही से मिलाने को आई
तुम्हें बात दिल की बताने को आई
हकीक़त जहां की दिखाने को आई
मैं नज़रों से पर्दा हटाने को आई
तुम्हारे सभी ग़म चुराने को आई
सुनो प्यार अपना लूटाने को आई
मैं नफ़रत दिलों से मिटाने को आई
तुम्हें नींद से अब, जगाने को आई
बुलाया है शिव ने बुलाने को आई
वतन का में दर्शन कराने को आई
मैं बाबा की मुरली सुनाने को आई
तुम्हें दिव्य दृष्टी दिलाने को आई
मैं सतयुग का रास्ता दिखाने को आई
दिलों में दिया इक जलाने को आई
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आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा।
स्वर्ग के सुंदर महलों का ये राजा हमें बनाएगा।।
स्वर्ग नरक है इसी धरा पर, परमपिता ये कहते हैं।
पहले भी स्वर्णिम था भारत, फिर स्वर्णिम बन जाएगा।।
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क्या बताएं , क्या घटे इन पत्थरों के शहर में।
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कहीं मां बाप हैं भूखे , कहीं घर द्वार जलते हैं।
लगा जमघट लुटेरों का, मुखौटे जो बदलते है।।
सियारों भेड़ियों की अब ,ये दुनिया बन गई यारो।
कहीं पर लुट रही अस्मत, कहीं अपराध पलते हैं।।
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आज भी कुछ लोग स्वार्थी हैं, मतलबी हैं। जो इस दुनिया के माया रूपी जंगल में पनप रहे हैं और दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं... यह गजल मेरी उन सभी लोगों को समर्पित है....तो मैं कहना चाहूंगी....
ग़ज़ल
पतझड़ में अमृत बरसाना, तेरे बस की बात नहीं।।
उल्फत के अब दिए जलाना, तेरे बस की बात नहीं।
नन्ही-नन्ही कलियों को, खूंखार भेड़िए तकते जब।
उन पंजों से उन्हें बचाना, तेरे बस की बात नहीं।।
लाख बिछा लो शतरंजें तुम, फिर भी मुंह की खायेगा।
मोदी से अब आंख मिलाना, तेरे बस की बात नहीं।।
तान तिरंगा सरहद पर जो, रोज चुनौती देते हैं।
उन वीरों को हाथ लगाना , तेरे बस की बात नहीं।।
कुदरत को ग़र छेड़ोगे तो, रोज कयामत आएगी।
तुफांनो से फिर टकराना, तेरे बस की बात नहीं।।
छोटी-छोटी बातों पर तुम, आपा अपना खो देते।
माही के दिल को छू पाना, तेरे बस की बात नहीं।।
हम आए थे अकेले और जायेंगे अकेले ।
शहीदों की शहादत पर लगते रहेंगे मेले।
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दीवानों की टोलियाँ
आज़ादी को चली बचाने दीवानों की टोलियाँ
वीरों की माता ने कर दीं अपनी खाली झोलियाँ
फौलादी तन देकर जिनको तिलक लहू से कर भेजा
देखो यारो खेल रहे वो खून से बैठे होलियाँ
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