या ख़ुदा बस मुझे तेरा दर चाहिए....!


या ख़ुदा बस मुझे तेरा दर चाहिए 
प्यार से सुर्ख़रू हर डगर चाहिए 

हाथ ऊपर उठा जब दुआ मैं करूँ
हर दुआ में अज़ब इक असर चाहिए

सर झुका करके जो भी इबादत करें 
उन सभी पर तेरी बस नज़र चाहिए 

जिस जहाँ से परिंदे उड़ाने भरें 
उस जहाँ सा मुझे इक नगर चाहिए 

एक पल को भी माही जो होना जुदा 
एक तुझसा मुझे हमसफर चाहिए

©डॉ० प्रतिभा 'माही'

Comments

Popular posts from this blog

भगवा है पहचान हमारी (70) हिन्दुत्व राष्ट्र

मेरा प्यार (90)

खट्टा-मीठा इश्क़...! [ COMING SOON MY NEW BOOK ] प्यार भरी नज़्में (मुक्त छंद काव्य)