हिंद राष्ट्र पर लिखती हूं, उसके ही गीत सुनाती हूं। हिन्द है आधार जगत का, सबको यह बतलाती हूं मैं गीत हिन्द के गाती हूं....!2 ****** मेरा मान तिरंगा है.. मेरी शान तिरंगा है... भारत मां की पहचान तिरंगा है....! तिरंगा है है है..तिरंगा है.... तिरंगा है है है.. तिरंगा है... तिरंगा है.... तिरंगा है.... तिरंगा है.....तिरंगा है...! केसरिया बहता रग - रग में, शक्ति बन भिड़ जाता है। सफेद रंग है सच्चाई का, शांति पाठ पढ़ाता है।। हरा रंग है हरियाली का, खेतों की अंगड़ाई है। और चक्र जो चलता प्रतिफल, उसमें रहा दिखाई है।। लहर लहर लहराए घर-घर, गीत सुहाने गाता है। वीर शहीदों की कुर्बानी हर पल याद दिलाता है।। वो आन तिरंगा है.... सम्मान तिरंगा है.... भारत मां की पहचान तिरंगा है....! तिरंगा है है है..तिरंगा है.... तिरंगा है है है.. तिरंगा है... तिरंगा है.... तिरंगा है.... तिरंगा है.....तिरंगा है ******** वक्त बदलना चाहिए* करे राज हिंदुत्व हमारा, वक्त बदलना चाहिए। अगर लाल भारत माँ के हो, रक्त उबलना चाहिए।। विजय विश्व की शपत उठाओ, नाज़ करे धरती माता। चले विश्व पर सत्ता अपनी, तख्त पल...
*मेरा प्यार* ********** लौट आया है, मेरा प्यार..! हाँ हाँ ..... लौट आया है, मेरा प्यार...! नाच उठा है, मन मयूरा... महक उठा है.... रूह का घर द्वार....! हाँ ..... लौट आया है, मेरा प्यार...!!! सदियों पहले ...! खो गया था.... न जाने.... ब्रह्मांड के किस ज़ोन में....! हो गया था गुम कहीं.... शून्य में शून्य बनकर...! तड़प रही थी रूह... अपने प्यार से मिलने को....! बैठी थी नज़रें बिछाए.... एक लंबे अरसे से.... बस उसकी एक झलक पाने को...! और विलीन हो जाने को...! पर आज... लौट आया है, मेरा प्यार..! नाच उठा है, मन मयूरा... महक उठा है.... रूह का घर द्वार....! हाँ..... लौट आया है, मेरा प्यार...!!! सुन...! सुन री सखी ... गुदगुदाने लगी हैं हवाएं.... और... संवरने लगीं हैं बहारें...! कर दिया है चंदन-चंदन... मेरा रोम - रोम ....! देख रहे हैं नजा़रे... सूरज चांद और सितारे... बजने लगे हैं... ढोल, मृदंग और शहनाई...! खिलने लगा है...! दिल की बगिया हर फूल...!!! क्योंकि ...? लौट आया है, मेरा प्यार..! नाच उठा है, मन मयूरा... महक उठा है.... र...
मेरा इश्क़, ही इबादत ये शब्द डूबे, इश्क़ में, तेरा नाम, लिख रहे हैं। हाँ आरजू में, बस तेरी ये, पैगाम , लिख रहे हैं ।। है इश्क़ फ़ितरत, में मेरी, मेरा इश्क़, ही इबादत । बस ज़िंदगी के, फ़लसफों का, अंजाम, लिख रहे हैं।। खट्टा-मीठा इश्क़...! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! चला आता है... मेरे ख्वाबों की गली... चुरा ले जाता है.... बिन छुए ही.... अपने आप से मुझे.... कर जाता है तन्हा... दुनिया की भरी भीड़ में...! रह जाती हूँ अकेली होकर विदेह तेरी याद में...! और क्या बताऊँ....!!! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! सुन यार... चाहे भोर का उजाला हो... या काली, अंधेरी रात का सन्नाटा...! शाम का सुनहरा आलम हो.... या चाँद की...
बहुत सुंदर लेखन।
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