••ज़िन्दगी••

         ढल रही थी ज़िन्दगी जब डूबते रवि रूप में
         आ गयी अब सामने वो लेखनी कवि रूप में
        जो बसी रग रग में मेरे बन सुगन्धि आज तक
        प्रीत बनकर छा गई वो लालिमा छवि रूप में

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