पंचकूला की धरती से..!!!
अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है। हर दिल से हुंकार निकलना, सुन लो बहुत जरूरी है।। चील व कऊए गिद्ध भेड़िए, देखो बैठे ताक रहे हैं। रणभूमि में बिगुल का बजना, सुन लो बहुत जरूरी है।। द्रोणाचार्य की धरती से , शीश नवाने आई हूँ । हर घर में इक बीज शौर्य का, आज उगाने आई हूँ।। चाहो तो ले लो तुम आकार, घर में पौध लगालो तुम। दुर्गा बनकर दैत्यों का मैं , नाश कराने आई हूँ।। पाँच कुला की धरती से मैं, मंच सजाने आई हूँ । गीत ग़ज़ल मुक्तक सब लेकर, यार सुनाने आई हूँ।। खुशियों से आ, भर लो झोली,प्रीत का दीप जलालो तुम। चुन चुन कर उल्फ़त के मोती, आज लुटाने आई हूँ। ...