पुण्यश्लोक मातोश्री अ हिल्या बाईं होल्कर व र्ष तीन सौ पूर्व सु न , उ तरी आ त्मा ए क। त न से तो थी साध्वी, मन से थी वो नेक ।। गीत सु नो सु नाऊँ किस्सा तुमको,ऐसी इक म र्दानी का। गाड़ दिया था झंडा जिसने, अपनी शौर्य कहा नी का। पुण्यश्लोक अहिल्या बाईं शिव की भक्त दिवानी का। गाड़ दिया था झंडा जिसने, अपनी शौर्य कहा नी का। करने को उद्धार देश का , धरती पर प्रकटी बच्ची। झूठ कपट सब दूर थे उससे , मन से थी बिल्कुल सच्ची ।। जीव जंतु या पशु पक्षी हों, सबसे लाड़ लड़ाती थी। बहना थी दो भाई की वो, उनसे होड़ ल गाती थी।। मात पि ता की गुड़िया रानी , बकरी गाय चराती थी। खेल-खेल में सखियों को वो, अपने हुनर दिखाती थी।। अपने सिर प र बांध के प गड...
अर्जुन बनकर युद्ध में लड़ना, सुन लो बहुत जरूरी है। हर दिल से हुंकार निकलना, सुन लो बहुत जरूरी है।। चील व कऊए गिद्ध भेड़िए, देखो बैठे ताक रहे हैं। रणभूमि में बिगुल का बजना, सुन लो बहुत जरूरी है।। द्रोणाचार्य की धरती से , शीश नवाने आई हूँ । हर घर में इक बीज शौर्य का, यार उगाने आई हूँ।। चाहो तो ले लो तुम आकार, घर में पौध लगालो तुम। दुर्गा बनकर दैत्यों का मैं , वंश मिटाने आई हूँ।। पाँच कुला की धरती से मैं, मंच सजाने आई हूँ । गीत ग़ज़ल मुक्तक सब लेकर, यार सुनाने आई हूँ।। आगे आकर भर लो झोली,दिल में जोत जलालो तुम चुन चुन कर उल्फ़त के मोती, प्यार लुटाने आई हूँ। ...
मेरा इश्क़, ही इबादत ये शब्द डूबे, इश्क़ में, तेरा नाम, लिख रहे हैं। हाँ आरजू में, बस तेरी ये, पैगाम , लिख रहे हैं ।। है इश्क़ फ़ितरत, में मेरी, मेरा इश्क़, ही इबादत । बस ज़िंदगी के, फ़लसफों का, अंजाम, लिख रहे हैं।। खट्टा-मीठा इश्क़...! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! चला आता है... मेरे ख्वाबों की गली... चुरा ले जाता है.... बिन छुए ही.... अपने आप से मुझे.... कर जाता है तन्हा... दुनिया की भरी भीड़ में...! रह जाती हूँ अकेली होकर विदेह तेरी याद में...! और क्या बताऊँ....!!! भुलाए नहीं... भुलाया जा सकता...! तेरा.... खट्टा-मीठा इश्क़...! जो आगोश में भर मुझे... कर देता है मदहोश.. आज भी...!! सुन यार... चाहे भोर का उजाला हो... या काली, अंधेरी रात का सन्नाटा...! शाम का सुनहरा आलम हो.... या चाँद की...
बहुत सुंदर लेखन।
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