ग़ज़ल दियों को जलाकर, अँधेरा मिटाना तू चुन चुन के खुशियाँ, चमन ये सजाना बरसती रहे मेहर, रब की सदा ही दिलों में मुहब्बत, की शम्मा जलाना गरीबों की कुटिया, रहे अब न सूनी तु लक्ष्मी से उनका, भी परिचय कराना डगर में कोई जब, मिले तुझको भूखा तु भोजन कराकर, सुधारस पिलाना दुआओं से भरता, रहे तेरा दामन हँसीं उन पलों को, तू हर-पल चुराना ये पितु मात ही तो, ख़ुदा की मूरत हैं सँजोकर हिया में, मुहब्बत लुटाना तू 'माही' का पुत्तर,बना आज 'माही' तू जीने का सबको, हुनर अब सिखाना ©डॉ० प्रतिभा 'माही''