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Showing posts from April, 2021

bhor ka shringar kar [47]

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हवन कर करो शुद्ध वातावरण को 【46】

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मुक्तक 【45】

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न जाने ये कैसी बेक़रारी है 【44】

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नई ग़ज़ल: दीवानी (43)

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बीत गया जो वक्त तुम्हारा, लौट न वापस आएगा 【42】

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  इस धरा का इस धरा पर सब धरा रह जाएगा  आओ उसको याद करें जो, पार हमें ले जाएगा बीत गया जो वक्त तुम्हारा, लौट न वापस आएगा इस धरा का इस धरा पर....।। भूल कर बैठा है उसको, जिसका प्यारे अंश तू  उससे ही अस्तित्व तेरा , है उसी का वंश तू  थाम ले उंगली उसी की, ढाल वह बन जाएगा  अब तो उसको याद कर ले वरना फिर पछताएगा  इस धरा का इस धरा पर ....।। स्वप्न सा संसार है यह , कुछ पलों का आसरा  हैं मुसाफ़िर हम यहाँ पर है अज़ब ही माज़रा  खूबसूरत हर नजारा एक दिवस ढह जाएगा  अब तो उसको याद कर ले वरना फिर पछताएगा  इस धरा का इस तरह ......।। © डॉ० प्रतिभा 'माही'

दियों को जलाकर, अँधेरा मिटाना 【41】

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ग़ज़ल दियों को जलाकर, अँधेरा मिटाना तू चुन चुन के खुशियाँ, चमन ये सजाना बरसती रहे मेहर, रब की सदा ही दिलों में मुहब्बत, की शम्मा जलाना गरीबों की कुटिया, रहे अब न सूनी तु लक्ष्मी से उनका, भी परिचय कराना डगर में कोई जब, मिले तुझको भूखा तु भोजन कराकर, सुधारस पिलाना दुआओं से भरता, रहे तेरा दामन हँसीं उन पलों को, तू हर-पल चुराना ये पितु मात ही तो, ख़ुदा की मूरत हैं सँजोकर हिया में, मुहब्बत लुटाना तू 'माही' का पुत्तर,बना आज 'माही' तू जीने का सबको, हुनर अब सिखाना ©डॉ० प्रतिभा 'माही''

नव संवत का अभिनन्दन है 【40】

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झूम-झूम, झन-नन, पायल बाजे स्वागत के लिए खड़े हुये हैं पलक फांवड़े बिछे हुये हैं नन्हीं नन्हीं किरणें आयीं देख उन्हें कलियाँ मुस्कायीं नव अंकुर नव पल्लव छाये बेला नव संगीत सुनाये झूम-झूम, झन-नन, पायल बाजे  ब्रह्म महूरत में हम आये कर में लोटा जल भर  लाये सूर्य देव को अर्क लगायें आओ मिलकर मंगल गायें झूम-झूम, झन-नन, पायल बाजे नव ज्योति नव दीप जलाकर करें आरता हाथ उठाकर नव संवत का अभिनन्दन है महक उठा सारा उपवन है झूम-झूम, झन-नन, पायल बाजे चिड़ियाँ चहक उठीं वृक्षों पर बहने लगी हवा अति सुंदर नव संवत का स्वागत कर लो दे दे मुबारक झोली भर लो झूम-झूम, झन-नन, पायल बाजे © डॉ० प्रतिभा  'माही'

तू जब याद आया....! 【39】

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नज़र में तू काली घटा बनके छाया तू जब याद आया  बहुत याद आया तू अँखियों से झर झर झरा बनके मोती सँजोया सँवारा जिया में छुपाया वो अनमोल पल कुछ समैटे ले दामन वो दरिया मुहब्बत का दिल में  बहाया तेरी आरज़ू में जिये अब तलक हम मिला जो भी अब तक हिया से लगाया ज़माने में जाने हवा क्या चली है जिसे अपना समझा उसी ने डुबाया जुदाई ये तेरी है कितनी और लम्बी  न आया तू खुद भी न मुझको बुलाया अखरती है पल पल ये तन्हाई अब तो क़लम ने सदा साथ मेरा निभाया लबों पर हँसी है ज़माने की ख़ातिर  ज़हन में ग़मो का समन्दर समाया छुपा है कहाँ तू बता किस जहाँ में भला दरमियाँ क्यूँ ये पर्दा गिराया चला आ तू दौड़ा तुझे रूह पुकारे तेरा नाम "माही" की रग रग समाया  © डॉ०प्रतिभा माही

Gateway Of Heaven भाग -02 (आत्मा क्या है और कैसे काम करती है..? ) 【38】

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                     Gateway Of Heaven भाग -02  (आत्मा क्या है और कैसे काम करती है..? )             जब आत्मा की बात चलती है तो मन में कई सवाल उठते हैं । उन सभी सवालों का उत्तर निम्न स्वरूपों में व्यक्त किया हुआ है:--- [1] आत्मा और शरीर का क्या संबंध है..?  उत्तर:-                यह शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है (वायु, गगन, जल, आग व मिट्टी) अर्थात   हवा, आकाश, पानी, अग्नि, व पृथ्वी।  हमारा यह शरीर एक खाली कार की तरह है ।   1)- जिस कार बिना ड्राइवर के नहीं चल सकती, उसे चलाने के लिए एक ड्राइवर की आवश्यकता पड़ती है।  2)- आपने देखा है कि एक हवाई जहाज बिना पायलट के नहीं चल सकता, उसे भी चलाने के लिए भी एक पायलट का होना जरूरी है। 3)- उसी तरह हमारे शरीर को चलाने के लिए भी एक ड्राइवर की आवश्यकता होती है, और वह ड्राइवर है हमारी आत्मा ।             आत्मा...

हुई हूँ मैं तेरी जब से ....【36】

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ग़ज़ल वो जिस भी रूप में आये, मुझे स्वीकार है अब तो करूँ इनकार कैसे मैं , मेरा दिलदार है अब तो उसी ने है गढ़ा मुझको, उसी ने आ सँवारा है हवाले कर दिया खुदको, वही सरकार है अब तो जिगर की खोलकर परतें, रमाई है वहाँ धूनी छुपा बैठा है अन्तर में, मेरा हक़दार है अब तो बरसता बन कभी बादल, कभी भँवरे सा मंडराता करुँ श्रृंगार क्यूँ नकली, वही श्रृंगार है अब तो जिधर जाती नज़र मेरी, उधर उसको ही पाती है हुई हूँ मैं तेरी जब से , चमन गुलज़ार है अब तो © डॉ० प्रतिभा 'माही'

कह दो ना तुम मरते हो 【35】

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ख़्वाब मेरा ही गढ़ते हो  आना कानी करते हो  हुस्न ग़ज़ब का है मेंरा  क्यूँ कहने से डरते हो  रोज़ चकोरी की छत पर बिन मौसम ही झरते हो  बात बनाना छोड़ो अब कह दो ना तुम मरते हो  धक-धक धड़के दिल 'माही'  छुप-छुप आहें भरते हो  © डॉ० प्रतिभा 'माही'

वो बोले हमारे ज़रा पास आके...【34】

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ख़रामा ख़रामा चले आ रहे थे  क़यामत बने वो गज़ब ढा रहे थे समैटे अकेले ही दामन में खुदको  वो पलकें झुकाकर के शरमा रहे थे नज़ाकत के पीछे छुपा राज गहरे वो नज़रें चुराते नज़र आ रहे थे          फ़िज़ाओं ने पूँछा ज़रा मुस्कुराके  बतादो हमें भी किधर जा रहे थे            वो बोले हमारे ज़रा पास आके यूँ हम होश खोकर किधर जा रहे थे         न जाने उठी पीर कैसी ये मन में  जो छुपते छुपाते चले जा रहे थे न खुद की ख़बर है न उसका ठिकाना जिया ने कहा तो बढ़े जा रहे थे        मुरलिया की धुन जबसे कानों पड़ी है बँधी डोर से हम खिंचे जा रहे थे © डॉ.प्रतिभा 'माही'

जो तन्हा न मिलते तो....!【32】

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न दिल ये धड़कता न रातें यूँ रोतीं जो तन्हा न मिलते तो बातें न होती न इक बूँद को यार स्वाती तरसती चकोरी न चन्दा को पल पल तड़पती न आतीं फ़िज़ायें न छातीं  घटायें  न गातीं ये सरगम भटकती हवाएँ            न करता वो गुन गुन न तितली मचलती  न रहमत ख़ुदा की आ किस्मत बदलती ख़ुशी के ये मोती न आँखों से झरते मुहब्बत से अपना जो दामन न भरते  मुलाकात की ये घड़ी भी न होती जो जीवन में अपने मैं उल्फ़त न बोती ✍© डॉ० प्रतिभा माही