वो बोले हमारे ज़रा पास आके...【34】

ख़रामा ख़रामा चले आ रहे थे 
क़यामत बने वो गज़ब ढा रहे थे

समैटे अकेले ही दामन में खुदको 
वो पलकें झुकाकर के शरमा रहे थे

नज़ाकत के पीछे छुपा राज गहरे
वो नज़रें चुराते नज़र आ रहे थे
        
फ़िज़ाओं ने पूँछा ज़रा मुस्कुराके 
बतादो हमें भी किधर जा रहे थे

          
वो बोले हमारे ज़रा पास आके
यूँ हम होश खोकर किधर जा रहे थे
       
न जाने उठी पीर कैसी ये मन में 
जो छुपते छुपाते चले जा रहे थे

न खुद की ख़बर है न उसका ठिकाना
जिया ने कहा तो बढ़े जा रहे थे
      
मुरलिया की धुन जबसे कानों पड़ी है
बँधी डोर से हम खिंचे जा रहे थे
© डॉ.प्रतिभा 'माही'

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