करो ना शरारत 【30】
नज़र को नज़र से मिलाकर कली ने
भँवर से कहा तुम करो ना शरारत
ये होली का दिन है करो ना शरारत
शरारत शरारत करो ना शरारत
नज़ाकत के तीरों से करती हो घायल
है छन छन छनकती ये पैरों में पायल
हो कमसिन बढ़ी चाँदनी सा बदन है
हूँ पहली नज़र से ही मैं तेरा कायल
चुरा लूँ तुझे मैं तो आकर तुझी से
समर्पण करे जो तू अपनी ख़ुशी से
वो बोली हया से करो ना शरारत
ये होली का दिन है करो ना शरारत
सुधा प्रेम रँग में तू ऐसा भिगो दें
तू ऐसा भिगो दें रहे कुछ न बाकी
तनिक पास जाकर वो बोली पिया से
मेरा अँग-अँग तू पूरा डुबो दे
मगन होके बोली उठा रुख से पर्दा
समर्पित हो तुझको करूँ मैं तो सजदा
मचलता ये तन-मन, करो ना शरारत
ये होली का दिन है करो ना शरारत
समा मुझको ख़ुद में बुझा प्यास मेरी
तू मोहन, मैं राधा, तू मेरा, मैं तेरी
मैं सदियों से तेरे लिए ही खड़ी हूँ
भला फिर तू काहे करे आज देरी
रंगीला आ रँग दे तू अपने ही रँग में
मैं गोरी ढलूँ आज माही के ढँग में
कहाँ हो प्रिये तुम करो ना शरारत
ये होली का दिन है करो ना शरारत
© डॉ० प्रतिभा 'माही' 【 30 】
Very very nice Poem.
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त💐💐
Deleteअति सुन्दर 🌹🌹
ReplyDeleteThanks dear💐💐
Deleteवाह क्या बात है, बहुत अच्छा है
ReplyDeleteThanks
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