तू जब याद आया....! 【39】

नज़र में तू काली घटा बनके छाया
तू जब याद आया  बहुत याद आया

तू अँखियों से झर झर झरा बनके मोती
सँजोया सँवारा जिया में छुपाया

वो अनमोल पल कुछ समैटे ले दामन
वो दरिया मुहब्बत का दिल में  बहाया

तेरी आरज़ू में जिये अब तलक हम
मिला जो भी अब तक हिया से लगाया

ज़माने में जाने हवा क्या चली है
जिसे अपना समझा उसी ने डुबाया

जुदाई ये तेरी है कितनी और लम्बी 
न आया तू खुद भी न मुझको बुलाया

अखरती है पल पल ये तन्हाई अब तो
क़लम ने सदा साथ मेरा निभाया

लबों पर हँसी है ज़माने की ख़ातिर 
ज़हन में ग़मो का समन्दर समाया

छुपा है कहाँ तू बता किस जहाँ में
भला दरमियाँ क्यूँ ये पर्दा गिराया

चला आ तू दौड़ा तुझे रूह पुकारे
तेरा नाम "माही" की रग रग समाया
 © डॉ०प्रतिभा माही

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