जो तन्हा न मिलते तो....!【32】


न दिल ये धड़कता न रातें यूँ रोतीं
जो तन्हा न मिलते तो बातें न होती

न इक बूँद को यार स्वाती तरसती
चकोरी न चन्दा को पल पल तड़पती

न आतीं फ़िज़ायें न छातीं  घटायें 
न गातीं ये सरगम भटकती हवाएँ 
         
न करता वो गुन गुन न तितली मचलती
 न रहमत ख़ुदा की आ किस्मत बदलती

ख़ुशी के ये मोती न आँखों से झरते
मुहब्बत से अपना जो दामन न भरते

 मुलाकात की ये घड़ी भी न होती
जो जीवन में अपने मैं उल्फ़त न बोती

✍© डॉ० प्रतिभा माही  

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