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Showing posts from 2023

एक बूंद तू पिला दे (84)

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स्नेह के धागे बाँधे हैं शब्द पिरोकर आँके हैं प्यार भरे रिश्तों के बूटे वक़्त के ऊपर टाँके हैं बज़्म में आइये मुस्कुरा लीजिए आप मिलकर ज़रा नाच गा लीजिए  क्या पता कल मिले वक़्त या ना मिले तालियाँ आज खुलकर बजा लीजिए बात इतनी सी उनको सताने लगी  मैं क्यों लोगों की नजरों में आने लगी  खेल शतरंज का वो लगे खेलने मात देकर बुलंदी को पाने लगी नई इक नीव रखनी है ज़माने को जगाना है। सुनो फलदार वृक्षों को, जतन कर अब बचाना है।। कभी मा-बाप को अपने ख़ुदा से कम समझना मत। तुम्हें उनसे दुआओं का मिला ये आशियाना  है।। हूँ मगन मदहोश हूँ, नाज़ मुझको आज पर। फ़क्र है नूर-ए-खुदा, वक्त के सरताज़ पर।। शून्य से वाबस्ता हूँ, इश्क के इस दौर में । रक़्स रूह करती मेरी, धड़कनों के साज पर।। जिसे कोई न पढ़ पाया, मैं ऐसी इक कहानी हूं। मुहब्बत है, मुझे खुद से, मैं खुद की ही दिवानी हूं।। बता दो तुम, ज़माने को, नहीं बाकी कोई हसरत। मिली हूं जब भी खुद से मैं, हुई तब-तब बेगानी हूं।। पहेली हूं, मैं उलझी सी, जिसे सुलझाना है दुष्कर। समझ कर भी, करोगे क्या, मैं दरिया की रवानी हूं।। खुदा की हर खुदाई को , अजी हंसकर के अपनाया।। थप...

पहेली हूं, मैं उलझी सी (83)

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मैं वीरों का मान लिखती हूं  शहीदों का सम्मान लिखती हूं लिखती हूं मां भारती की हुंकार और देश का उत्थान लिखती हूं..। दीवानों की टोलियाँ आज़ादी को चली बचाने दीवानों की टोलियाँ वीरों की माता ने कर दीं अपनी खाली झोलियाँ फौलादी तन देकर जिनको तिलक लहू से कर भेजा  देखो यारो खेल रहे वो खून से बैठे होलियाँ मैं वो कली हूं  जो कभी मुरझाती नहीं केवल रब के अलावा कहीं सर झुकाती नही भिड़ जाती हूं दुनियां के खर पतवारों से बे वजह किसी सिर पर बिठाती नहीं पहेली हूं, मैं उलझी सी, जिसे कोई न पढ़ पाया, मैं ऐसी इक कहानी हूं। मुहब्बत है, मुझे खुद से, मैं खुद की ही दिवानी हूं।। पहेली हूं, मैं उलझी सी, जिसे सुलझाना है दुष्कर। समझ कर भी, करोगे क्या, मैं दरिया की रवानी हूं।। गजल जिसे कोई न पढ़ पाया, मैं ऐसी इक कहानी हूं। मुहब्बत है, मुझे खुद से, मैं खुद की ही दिवानी हूं।। बता दो तुम, ज़माने को, नहीं बाकी कोई हसरत। मिली हूं जब भी खुद से मैं, हुई तब-तब बेगानी हूं।। पहेली हूं, मैं उलझी सी, जिसे सुलझाना है दुष्कर। समझ कर भी, करोगे क्या, मैं दरिया की रवानी हूं।। खुदा की हर खुदाई को , अजी हंसकर ...

मिलन की आस ...! (82)

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मुक्तक प्यार की ख़ातिर चले आओ जहाँ भी हो, हमारे प्यार की ख़ातिर। तड़पती रूह रह-रह कर, तुम्हारे प्यार की ख़ातिर।। तुम्हें भेजा है उस रब ने, तकाज़ा वक़्त का समझों। लिए बैठे हैं हाथों में नज़ारे प्यार की ख़ातिर।। मिलन की आस लाईं हैं बरसता नूर चहरे पर, चुभन इक खास लाईं हैं तेरे अहसास की बूँदें, नया अहसास लाई हैं। मुहब्बत को लिए दिल में, चले आये तेरे दर पर। ज़रा देखो भरी महफ़िल , मिलन की आस लाईं हैं।। बोलतीं आँखें मुहब्बत हो या रुसवाई, सभी रँग घोलतीं आँखें। नज़ारों को नज़र में भर, नशे से डोलतीं आँखें।। बड़ी चंचल सयानी हैं , बना लेतीं हैं दीवाना। छुपालो लाख हाल -ए -दिल,अजी सब बोलतीं आँखें।। तुझे तुझसे चुराने को खड़ी हूं तेरे सम्मुख मैं, तुझे तुझसे चुराने को।। चली आई हूं महफिल में, तुझे अपना बनाने को। जिगर को थाम कर बैठो, संभल जाओ मेरे दिलवर। बिछी कदमों तले तेरे, सुमन बन कर लुभाने को।। फिर शुरू होगी मिलेंगे जब कभी हम तुम , रवानी फिर शुरू होगी। सुनो माही मुहब्बत की, कहानी फिर शुरू होगी।। उडूँ आज़ाद पंछी सी, मगन हो चूमती अम्बर। गुज़रते पहर में यारा, जवानी फिर शुरू होगी।। मुझे अपना बनाओ ना भला नाराज़ क...

स्वर्णिम भारत के निर्माण में योगदान (81)

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मैं बाबा की वो मीठी बच्ची हूं... वो कली हूं....  जो कभी मुरझाती नहीं...! सिर्फ बाबा के अलावा....  कहीं और सर झुकाती नहीं...! भिड़ जाती हूं... दुनिया के खरपतवारों से....! बेवजह.... किसी को सर पर बिठाती नहीं...!! जिसे कोई न पढ़ पाया, मैं ऐसी इक कहानी हूं। मुहब्बत है, मुझे खुद से, मैं खुद की ही दिवानी हूं।। खुदा है इश्क़ 'माही' का , चढ़ा सिर पर करे नर्तन। गढा़ है  जिसको बाबा ने, गजल मैं वो रूहानी हूं।। पांच तत्व से है बना, मेरा सुंदर रूप । मैं तो हूं एक आत्मा, बिंदी ज्योति स्वरूप।। नाम मेरा है शिव पिया , दिया प्रभु ने आन। कुछ प्रतिभा माही कहे, कुछ अब तक अनजान।। स्वर्णिम भारत के निर्माण में  , मैं अपनी आहुति देते हुए मैं कहना चाहती हूं बज़्म में आए हो प्यार कर लो ज़रा। थाम कर हाथ में हाथ नच लो ज़रा।। कल इजाजत समय की मिले ना मिले। ठोक कर तालिया  आज हँस लो ज़रा ।। परिवर्तन की आई बेला बच्चों पास बुला लो तुम  आया हूं मैं आज धरा पर थोड़ा समय निकालो तुम आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा....

पुस्तक: इश्क़ नचाए गली-गली (सूफ़ी गीत संग्रह) समीक्षा (80)

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पुस्तक  amazon पर उपलब्ध है , नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आप प्राप्त कर सकते हैं इश्क नचाये गली गली (Ishq Nachaye Gali Gali) https://amzn.eu/d/cg4QhYD पुस्तक :   इश्क़ नचाए गली-गली (सूफ़ी गीत संग्रह) रचनाकार :  डॉ० प्रतिभा 'माही' (पंचकूला) हरियाणा। संपर्क: मो० न० 8800117246 समीक्षा :   एम० एल० अरोड़ा ‘आज़ाद’ ( लेखक/संपादक/अनुवादक/प्रकाशक)  8360773963 चंडीगढ़।               इश्क़ रब से हो या रब के बनाए इंसानों से, जब हो जाए,  तो वाकई गली-गली में नचा ही देता है। डॉ प्रतिभा ‘माही’ जी की सूफियाना अंदाज में लिखी गई  पुस्तक ‘ इश्क़ नचाए गली-गली’ जिसमें उन्होंने 76 गीत अपने माही/पिया/कृष्णा/ मोहना को समर्पित किए हैं। समर्पण देखते ही पुस्तक के प्रति रुचि जाग जाती है, कि एक ‘माही’ तो है प्रतिभा, सूफ़ी गीतों की रचयेता, तो यह दूसरा ‘माही’ कौन है…?               जैसे-जैसे हम गीतों को पढ़ते जाते हैं, गुनगुनाते जाते हैं, हम ख़ुद भी उस ‘माही’ को समर्पित...

हिंदी बोलो मत शरमाओ(75)

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बने विश्व की भाषा हिंदी ,वक्त बदलना चाहिए। राज रहे हिंदी का बस अब, तख्त पलटना चाहिए। गजल मुझे कहते सभी हिन्दी सखी उर्दू हमारी है सुरीली हूँ मैं कोयल सी ज़माने को वो प्यारी है पीपी भारी न पड़ जाऊँ डरे यारो ये अंग्रेजी महारानी मैं भारत की , वो शहज़ादी हमारी है ग़ज़ल गीतों में करते हम, मुहब्बत की सदा बातें  चले जादू हमारा जब चढ़े अदभुत ख़ुमारी है झगड़ते हो क्यूँ आपस में क्यूँ दुश्मन तुम बने बैठे। मैं हिंदी भी तुम्हारी हूँ वी उर्दू भी तुम्हारी है। अज़ब रिश्ता है दोनों का, बँधे इक डोर से हम तो ख़ुदा के हम सभी बन्दे डगर इक ही हमारी है। भला सीमा क्यूँ खींची है करें फरियाद हम 'माही'। इबादत कर रही उर्दू बनी हिन्दी पुजारी है। © डॉ० प्रतिभा 'माही' हिंदी बोलो मत शरमाओ ***************** जग की राज दुलारी हिंदी, है भारत माता की बिंदी। हिंदी बने विश्व की भाषा , स्वाभिमान की हो परिभाषा। हिंदी को सम्मान मिले अब , जन-जन से बस मान मिले अब । आओ मिलकर कदम बढ़ायें,  घर-घर में जाकर समझायें । बोल चाल की भाषा हिंदी,  चमक उठे हिंदी की बिंदी । हिंदी की तो बात अलग है , चाल अलग है ढाल अलग है । हिंद...

सखी री मति रोकै तू गैल (77)

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कहूं पोय लहगा, कहूं पोय चोली लाज शर्म सब,  छोड़के मैं तो ,  बस कान्हा की होली सखी री... मति रोके तू गेल.... मैं तो वृंदावन जाऊं री...!2 मैं तो वृंदावन जाऊं री...! मैं तो वृंदावन जाऊं री...! सखी री... मति रोकै तू गेल..... मैं तो वृंदावन जाऊं री...! जौ रोकै तू गेल हमारी... प्राण छोड़ उड़ जाऊंगी....! सखी री... मति रोकै तू गेल..... मैं तो वृंदावन जाऊं री...! वृंदावन में रास रचावें...  राधा संग मुरारी...! बलि बलि जाऊं देखि देखि  मैं.... अपनों तन मन हारी....! डोल रही हूं बावरिया सी.. प्राण छोड़ उड़ जाऊंगी....! सखी री... मति रोकै तू गेल..... मैं तो वृंदावन जाऊं री...! © Dr Pratibha 'Mahi'

वक्त बदलना चाहिए (78)

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हिंद राष्ट्र पर लिखती हूं, उसके ही गीत सुनाती हूं। हिन्द है आधार जगत का, सबको यह बतलाती हूं। मैं गीत हिन्द के गाती हूं....!2 *दोहा*  हुआ विभाजन देश का, मच गया हाहाकार। बच्चे बूढ़े नर नारि सब, थे बेबस लाचार।।  *दोहा*  सरहद की वो सर ज़मी , हुई रक्त से लाल। लाखों परिजन देश के , गए काल के गाल।। दोहा पीड़ा का वर्णन नहीं, छूटा सब घर द्वार। अपनों की खातिर लड़े, छोड़ दिया संसार।।  *वक्त बदलना चाहिए*  करे राज हिंदुत्व हमारा, वक्त बदलना चाहिए। अगर लाल भारत माँ के हो, रक्त उबलना चाहिए।। विजय विश्व की शपत उठाओ, नाज़ करे धरती माता। चले विश्व पर सत्ता अपनी, तख्त पलटना चाहिए।।  *दीवानों की टोलियाँ*  आज़ादी को चली बचाने दीवानों की टोलियाँ वीरों की माता ने कर दीं अपनी खाली झोलियाँ फौलादी तन देकर जिनको तिलक लहू से कर भेजा  देखो यारो खेल रहे वो खून से बैठे होलियाँ

तिरंगा (76)

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हम सभी रूहें हैं अविनाशी….! Bk ********************** है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव , हम उसी लोक के  वासी हैं …. हम सभी रूहें अविनाशी हैं...! आ पवन बलाएँ लेती है, खग-मृग सब करते हैं नरतन...! आ कर के तबस्सुम नाच उठी टूटा हर इक अपना बन्धन...! है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव , हम उसी लोक के वासी हैं …. हम सभी रूहें अविनाशी हैं...! बस लींन हुए हम 'माही' में, अब बरस रहा हरसूं कुमकुम...! हम गुथे हुए हैं, चोटी से, हुए सिफ़र में जाकर गुम---! है नहीं जहाँ पर द्वेष - भाव , हम उसी लोक के वासी हैं …. हम सभी रूहें अविनाशी हैं...! ******* आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा   स्वर्ग के सुंदर महलों का ये राजा हमें बनाएगा   स्वर्ग नरक है इसी धरा पर, परमपिता ये कहते हैं  पहले भी स्वर्णिम था भारत, फिर स्वर्णिम बन जाएगा तुम्हीं आदी अनन्ता हो, तुम्हारी बात अलग बाबा  खड़ा हर कोई दर पर आ, तुम्हारा साथ अलग बाबा मसीहा हो सभी के तुम, सभी की पीर हरते हो  तुम्हें पाकर हूँ आनंदित, मिली सौगात अलग बाबा कमजोर नहीं हैं, नारी हैं। इकलौते सब पर भारी हैं।। हल्के में मत ...

कवि सम्मेलन(79)

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बन्दिशों को तोड़कर, प्यार से मैं बोल कर। शब्द के कुछ गुलगुले, चाशनी में घोल कर।। आ गई हूं सामने, बात दिल की बोलने । ठोंकिये अब तालियाँ, हाथ अपने खोल कर।। मुझको उनसे प्यार , है तो है दिल-ए-गुलज़ार, है तो है डूबी हूँ गर ख़्वाब में तेरे पगलों में नाम शुमार, है तो है कल यार उनसे...  मुलाकात हो गई सोची नहीँ थी वही बात हो गई...!! सिलसिला शुरू हुआ.... पता ही नही चला.... कि कब दिन गुज़रा, कब शाम ढली.... और कब रात हो गई...! सोची नहीँ थी वही बात हो गई...!! गुफ्तगू करने लगे... सभी सितारे....  और जुगनू भी निकल आए.... अपने मठों से बाहर......  झींगुर बजाने लगे बाजा .... और टर्र - टर्र  टर्राने लगे  मेंढक..... देखते - देखते ... चाँदनी चाँद के आगोश में खो गई सोची नहीँ थी वही बात हो गई...!! चाँदनी चाँद मैं खो जाए तो अमावस आती है  अगर छेड़े कोई कुदरत तो कयामत छाती है दिल में उसको, कैद किया फिर,फैंकी सारी चाबियां अनजाने में, नज़रें मेरी, कर बैठीं गुस्ताखियां शोर मचाता इंजन जैसे, दौड़ रहा हो पटरी पर  धक-धक धक-धक धड़के धड़कन ,  ऐसी हैं बेताबियां ***** मुझे लगता ह...

सुनो आहें मैं भरता हूं वो अपनी जेब भर्ती है

चोट खाए हुए हैं....! मुझे लगता है.... यहां कुछ लोग.... बहुत चोट खाए हुए हैं....! तभी तो,  नजरें नीचे झुकाये  हुए हैं....! जब बैठी हो बीवी सामने....  तो डर लगता है जनाब....! बेचारे.... खुलकर हंस नहीं पाते.... खुलकर तक नहीं पाते... तभी तो रुमाल में.... अपना मुहूँ छुपाए हुए हैं...!  क्या कहें...? अपनों के सताये हुए हैं.....! यहां कुछ लोग.... बहुत चोट खाए हुए हैं....!!!!! Gazal: सुनो आहें मैं भरता हूं वो अपनी जेब भर्ती है मैं उससे प्यार करता हूं वो अपनी चाल चलती है बड़े ही प्यार से यारो, चुरा लेती सभी सुख चैन खड़ी हो रोज छाती पर, मेरी वो मूंग दलती है। कभी दो शब्द मैं कहता, अजी जब प्यार से उसको  तभी बन जाती रणचंडी, आ मुझ पर टूट पड़ती है। चला देती वो आ मुझ पर, कभी बेलन कभी करछी रसोई में पकौड़े सा मुझे वो रोज तलती है। सुनो कमसिन कली सी वो, नही है अप्सरा से कम। बड़ी भोली है दिखने में, मगर नागिन सी डसती है। अदालत में सुनो हक से सुनाता फैसला सबको। मगर कब सामने उसके, मेरी ये दाल गलती है। करूं तो मैं करूं क्या अब, नहीं कुछ भी समझ आता। बतादो यार मुझे माही, क्यूं बीवी रोज छलत...

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन (26/05/2023) 69

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दिल्लीी में एम०के० साहित्य अकादमी (रजि०) पंचकूला ने करवाया:  अखिल भारतीय कवि सम्मेलन             डॉ० प्रतिभा माही ने अब अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग शहरों में कवि सम्मेलन करने का बीड़ा उठाया है। दिल्ली, गुरुग्राम, करनाल, नेलोखेड़ी, अम्बाला, पंचकूला, चंडीगढ़ में अनेकानेक कार्यक्रम करने के बाद पुन: दिल्ली की तरफ रुख किया और एम०के० साहित्य अकादमी (रजि०) पंचकूला द्वारा अखिल भारतीय दयानंद सेवाश्रम के वैचारिक क्रांति शिविर में भव्य अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन 26 मई 2023 को शाम 4:30 बजे से 7:00 बजे तक आर्य समाज के किशोर शिविर दिल्ली में किया गया।जोकि श्री योगेन्द्र खट्टर के संयोजन में श्री राजेश चेतन के मार्गदर्शन में हुआ।            इस समारोह में आमंत्रित प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय कवि राजेश चेतन, श्री कलाम भारती, श्री रसिक गुप्ता, श्री राजेश अग्रवाल, श्री मोहित शौर्य व डॉ० प्रतिभा 'माही' ने अपनी प्रस्तुतियां दीं। इस समारोह में क्लास 6 से 12वीं तक के समस्त भारत से लगभग 400 बच्चे उपस्थित रहे तथा कवि सम्...